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सरकार का स्टिंग कराने के पीछे मंशा क्या थी?

पिछले कुछ समय से राजनीतिक अस्थिरता का उत्तराखंड शिकार होता आया है। चाहे वह भाजपा की सरकार में तीन बार मुख्यमंत्री का बदलना हो या कांग्रेस की सरकार में विजय बहुगुणा के बाद हरीश रावत का मुख्यमंत्री बनना।यहां गौर करने वाली बात यह है कि राजनीतिक समीकरणों से मुख्यमंत्री बदले गए लेकिन हरीश रावत के समय कांग्रेस के कुछ विधायकों ने सत्ता परिवर्तन करना चाहा लेकिन असफलता मिली।फिर उसके बाद राजनीति में पत्रकारिता की एंट्री हुई और मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग हुए लेकिन फिर भी सरकार नहीं गिर पाई लेकिन हरीश रावत चुनाव में औंधे मुंह गिर गए।
आम जनमानस में स्टिंग के माध्यम से बेनकाब हुए हरीश रावत को एक नहीं दो-दो विधानसभाओं से बुरी तरह हार मिली।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि आजकल उत्तराखंड की राजनीति में फिर से सरकार को अस्थिर करने के लिए स्टिंग सामने आ रहे हैं लेकिन जनता इन स्टिंग को महत्व नहीं दे रही है। आखिर पिछली सरकार के स्टिंग और वर्तमान सरकार के स्टिंग में अंतर क्या है।
पूर्ण बहुमत वाली सरकार जनता ने इस लिए चुनी की सरकार पूरे 5 साल चले और उत्तराखंड का चौमुखी विकास हो लेकिन पत्रकारिता के नाम पर अपना धंधा चमकाने वाले और पैसे कमाने के लालची कुछ लोगों को सरकार की छवि पसंद नहीं आ रही। वह चाहते हैं की सरकार को किस तरह से ब्लैकमेल किया जाए। इसके लिए उन्होंने कुछ नौकरशाहों को झूठा लालच देकर स्टिंग कराना चाहा। जबरन पैसे देकर हमारा कार्य करवा दो और मुंह से हां बुलवा दो बस हमारा काम हो जाएगा। हम क्लिपिंग में छेड़खानी कर एक स्टिंग बनाएंगे इस सरकार के वरिष्ठ नौकरशाहों और सरकार के मुखिया को ब्लैकमेल कर पैसा कमाएंगे। इस सोच और मंशा के साथ पिछले 1 वर्ष से कुछ तथाकथित चैनल वाले लोकप्रिय सरकार को गिरना चाहते हैं। यह मैं नहीं कह रहा ब्लैक मेलर पत्रकार का इतिहास कह रहा है वरना 18 साल में अकूत संपत्तियों के मालिक कैसे बन बैठे। एक चैनल खोलना और जगह जगह संपत्ति बनाना ईमानदार व्यक्ति के लिए मुश्किल ही नहीं असंभव है लेकिन तथाकथित इस चैनल के मालिक की संपत्ति इस तरह बड़ी है जैसे किसी को कह दिया जाए कि किसी की कमजोरी पकड़ो और नोट बनाओ। लेकिन यहां इनकी दाल नहीं गली क्योंकि सरकार का मुखिया जीरो टोलरेंस पर कार्य कर रहा है।
एक बड़ा सवाल यह भी है कि जिस तरह देश का सबसे बड़ा घोटाला टूजी कुछ मीडिया घरानों की देन था जिन्होंने 2जी मामले में लाइसेंस दिलाने के नाम पर करोड़ों अरबों रुपए का घालमेल किया उसी की तर्ज पर कार्य कर रहे इस चैनल के मालिक ने भी उत्तराखंड को खोखला करने का कार्य किया है और इसका भरपूर साथ दिया इन राजनीतिक पार्टियों के अवसरवादी नेताओं ने।
आज बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर मुख्यमंत्री को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है क्या उनकी सरकार में कोई विभीषण है जो इस तथाकथित चैनल मालिका का साथ दे रहा है जो नहीं चाहता कि सरकार जीरो टोलरेंस पर कार्य करें क्योंकि जब मुख्यमंत्री स्वयं ही ईमानदारी से कार्य कर रहे हैं तो स्वाभाविक सी बात है कि उनके नीचे कार्य कर रहे अधिकारी या नेता को भी ईमानदारी से कार्य करना पड़ेगा।यही वजह है कि राजनीति और पत्रकारीता के तथाकथित लोग अपना धंधा चमकाने में कामयाब नहीं हो रहे है। इस चैनल के मालिक का रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं है। जानकार बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य के गठन के समय सिर्फ एक अटैची लेकर आने वाले इस पत्रकार ने उत्तराखंड के अविवेकी नेताओं को ऐसे सब्जबाग दिखाएं कि वह इस के झांसे में आते गए और यह पत्रकार चालाक कौवे की तरह अपना अंपायर खड़ा करता गया।
जिसके चैनल में पत्रकारों को महीनों तक सैलरी न दी जाती हो, वह आज सुचिता की बातें कर रहे हैं। अब समय आ गया है ऐसे पत्रकारों को या तथाकथित ब्लैकमेलर को उत्तराखंड से बाहर किया जाए हम सबको मिलकर उत्तराखंड को बचाना है तो वर्तमान सरकार के साथ एकजुटता के साथ खड़ा होना पड़ेगा। सरकार गिराना और ब्लैक मेलिंग करके सत्ता परिवर्तन करने की चाह रखने वाले तथाकथित लोगो को उत्तराखंड का भाग्य विधाता नहीं बनने देना है वरना यह अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी ऐसे मूर्ख को महत्वपूर्ण सीट पर बिठा देंगे जिससे उत्तराखंड के हितों की सिर्फ हानि ही होगी।