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गाय से प्राप्त अमृत शरीर को पुष्ट करने में सदैव समर्थः डा. शशि कांत

जहां योग से विभिन्न प्रकार के रोगों का समन हो सकता है वही गाय से प्राप्त अमृत उन रोगों को आमूलनष्ट करने और शरीर को पुष्ट करने में सदैव से समर्थ है। शास्त्रोक्त कई प्रमाण हमें प्राप्त होते हैं जिसमें गोसेवा से मनोनुकूल फल की प्राप्ति होती है, इसका एक उदाहरण रघुवंशमहाकाव्य में महाकवि कालिदास ने रघु के जन्म को गौ सेवा का फल रूप में वर्णित किया है। यह बात काशी हिंदू विश्वविद्यालय वैदिक दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. शशि कांत द्विवेदी ने कही।

विश्व योग दिवस के उपलक्ष्य पर कामधेनु प्रकल्प उत्तराखंड, के तत्वावधान में प्रकल्प कार्यालय गौलापार, हल्द्वानी द्वारा योग और गाय विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का प्रारंभ वैदिक मंगलाचरण से प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में डॉ शशि कान्त द्विवेदी रहे।

कार्यक्रम के संयोजक डॉ कंचन तिवारी, असिस्टेंट प्रोफेसर, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, ने कहा कि भगवान शंकर को आदि योगी माना जाता है और आज विश्व योग दिवस भी है । योग के प्रवर्तक भी भगवान शिव हैं और वह गाय के प्रथम उपासक भी हैं तो योग और गाय का जो संबंध है वह दैनिक उपयोगी है।

इस अवसर पर सभी अतिथियों का परिचय कामधेनु प्रकल्प के सचिव डॉ जगदीश चंद पांडे ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ चंद्रप्रकाश उप्रेती ने किया। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन संस्था के अध्यक्ष डॉ एनके जोशी जी ने किया तथा डॉ० हेमन्त जोशी ने मंगलाचरण किया। इस अवसर पर डॉक्टर नवीन पंत, डॉ. मूलचन्द्रशुक्ल, डॉ धीरज शुक्ला, ललित जोशी, प्रो. लज्जा भटट, डीसी त्रिपाठी, डॉ सूरज मलकानी, डॉ दिनेश चंद्र पांडे, संजय कुमार पांडे, रमेश चंद, मोहन सिंह जोशी, आदि लोग उपस्थित रहे।