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उत्तराखंड की शायरा बानो ने उठाया था सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक का मामला

तीन तलाक के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाली शायरा बानो उत्तराखंड की बेटी है। शायरा उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली है। उनका निकाह साल 2002 में इलाहाबाद के रिजवान अहमद से हुई थी। ससुराल वालों की दहेज प्रताड़ना, फिर पति के तलाक देने के बाद शायरा बानो कोर्ट पहुंचीं। आरोप है कि पति शायरा बानो को लगातार नशीली दवाएं देकर याददाश्त कमजोर कर दिया और साल 2015 में मायके भेजकर तलाक दे दिया था। मार्च, 2016 में उतराखंड की शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी।
शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वह तीन बार तलाक बोलकर तलाक देने की बात को नहीं मानती हैं। शायरा की याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 की वैध्यता पर भी सवाल उठाए गए हैं। यही वह धारा है जिसके जरिये मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह, तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) और निकाह-हलाला जैसी प्रथाओं को वैध्यता मिलती है। इनके साथ ही शायरा ने मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 को भी इस तर्क के साथ चुनौती दी है कि यह कानून मुस्लिम महिलाओं को बहुविवाह जैसी कुरीतियों से संरक्षित करने में सार्थक नहीं है।
देश की सर्वोच्च अदालत में पांच धर्मों के जस्टिस मिलकर शायरा बानो के मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस मामले पर फैसला सुनाने वाले जजों में चीफ जस्टिस जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कुरियन जोसफ (क्रिश्चिएन), जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन (पारसी), जस्टिस यूयू ललित (हिंदू) और जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) शामिल रहें।