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आम आदमी पार्टी में केजरीवाल राज

आम आदमी पार्टी की ओर से राज्यसभा चुनाव के लिए जिन तीन लोगों के नाम तय किए गए हैं, उससे साफ है कि पार्टी में केजरीवाल का कद सबसे बड़ा है। पार्टी में केजरीवाल का साफ हस्तक्षेप है।
आम आदमी पार्टी के ये तीन उम्मीदवारों के नाम के ऐलान से और स्पष्ट हो गया है। यही नहीं इससे इस तथ्य पर भी मुहर लगती है कि जिस-जिस ने भी केजरीवाल से असहमति दिखाई और उनके काम करने के तौर तरीकों पर सवाल उठाए आम आदमी पार्टी के संरक्षक ने उसको निपटा दिया। ऐसे लोगों की काफी लंबी लिस्ट है।
आम आदमी पार्टी के मंचीय कवि कुमार विश्वास केजरीवाल से असहमति रखने के ताजा शिकार हैं। विश्वास और केजरीवाल के बीच कई मुद्दों पर अलग-अलग राय देखने को मिली है। चाहे वो मामला कपिल मिश्रा का हो या अमानतुल्लाह खान का।


केजरीवाल के गुट में कुमार विश्वास को राष्ट्रवादी और बीजेपी से हमदर्दी रखने वाले व्यक्ति के तौर देखा जाता है, जबकि केजरीवाल के राजनीति इसके विरोध में है। हाल के दिनों में विश्वास आप में ढांचागत बदलाव की बात करते रहे हैं। जाहिर है पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को ये बर्दाश्त नहीं होता।कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी में कुमार का विश्वास सिमटता दिख रहा है। हालांकि उनके पास राजस्थान का प्रभार है।
कभी केजरीवाल के पुराने और मजबूत रणनीतिकार रहे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की आम आदमी पार्टी से विदाई बड़ी हृदय विदारक रही। 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद योगेंद्र यादव-प्रशांत भूषण और केजरीवाल के बीच जबरदस्त मतभेद उभरकर सामने आए। हालात ये बन गए कि पार्टियों की बैठकों में नेताओं के बीच गाली गलौज और हाथापाई की नौबत आ गई।
योगेंद्र और प्रशांत भूषण पार्टी से अलग हो गए। दोनों नेता आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे, लेकिन केजरीवाल ने दोनों को पार्टी से बाहर कर दिया। योगेंद्र और प्रशांत ने स्वराज अभियान नाम से एक दल बनाया और दिल्ली में अपनी लड़ाई लड़ने की ठानी।
योगेंद्र यादव की अगुवाई में स्वराज अभियान ने एमसीडी चुनावों में भी हिस्सा लिया, लेकिन उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिली। राज्यसभा के उम्मीदवारों के ऐलान के बाद योगेंद्र और प्रशांत ने ट्वीट कर इसे पार्टी का घोर पतन करार दिया।
कभी दिल्ली में सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने केजरीवाल पर दो करोड़ घूस लेने का सनसनीखेज आरोप लगाया था। 2017 की गर्मियों में कपिल मिश्रा और केजरीवाल टीम के बीच जबरदस्त जंग चलती रही। कपिल को कुमार विश्वास का समर्थन हासिल था और संघर्ष धीरे-धीरे बढ़ता गया। बाद में कपिल मिश्रा बीजेपी की ओर खिसकते गए और विवाद मंद पड़ता गया, लेकिन पूरे मामले में चुप्पी साधे केजरीवाल कपिल मिश्रा के लिए सियासी तौर पर साइलेंट किलर साबित हुए।
केजरीवाल के खिलाफ सबसे पहले बगावती सुर छेड़ने वाले विनोद कुमार बिन्नी ने आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा के खिलाफ सबसे आवाज उठाई और चुनावी मैदान में भी उन्हें चुनौती दी।
कभी दिल्ली में केजरीवाल के साथ मिलकर राजनीति करने वाले बिन्नी ने केजरीवाल की पहली सरकार में मंत्री पद न मिलने के बाद बगावती सुर अपना लिए थे।
इसके बाद अगले चुनाव के लिए पार्टी की ओर से टिकट न मिलने पर उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बाद में बिन्नी को पार्टी से निलंबित कर दिया।