अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में स्थानीय लोगों को नौकरियों में 70 प्रतिशत आरक्षण की दलील को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने खारिज कर दिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स प्रशासन की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को यह कहकर खारिज कर दिया है कि भारत सरकार के अधीन संचालित होने वाले ऑटोनामस संस्थानों में स्थानीयता के हिसाब से आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यह नियम एम्स ऋषिकेश पर भी लागू होता है। करीब तीन महीने पहले आउटसोर्सिंग पर तैनात कर्मचारियों को एम्स से निकाल दिया गया था। इसके बाद करीब 45 निष्कासित कर्मियों ने क्रमिक धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया।
इस मामले में काफी सियासी दखल भी सामने आई। एम्स प्रशासन ने निष्कासन के पीछे तर्क दिया कि अनुबंध के मुताबिक सभी कर्मचारियों ने लिखित सहमति दी थी कि स्थायी नियुक्ति होने के बाद अस्थाई पद पर नियुक्त कर्मियों को निकाला जा सकेगा।
उक्त अनुबंधों के अनुसार ही कर्मचारियों को संस्थान से कार्यमुक्त किया गया। इसी क्रम में स्थानीय जन प्रतिनिधियों ने एम्स की नौकरियों में 70 फीसदी स्थानीय लोगों को आरक्षण देने का मुद्दा उठाया। इस मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी ज्ञापन सौंपा गया था।
एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने स्पष्ट किया था कि नियमों के विपरीत जाकर वे नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था नहीं दे सकते हैं। निष्कासित कर्मचारियों के समर्थन में मेयर अनिता ममगाईं और विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल ने भी एम्स निदेशक से वार्ता की थी।
इसी क्रम में सहमति बनी कि एम्स की ओर से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को प्रस्ताव भेजकर स्थानीयता के आधार पर आरक्षण जारी करने की अनुमति मांगी जाएगी। उक्त प्रस्ताव पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स को स्पष्ट किया है कि डिपार्टमेंट आफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) की गाइडलाइन के अनुसार क्षेत्रीय या राज्य के आधार पर ऑटोनॉमस संस्थानों में आरक्षण की कोई नियमावली नहीं है।