हिंदू मास में 12 मास यानी महीने होते है। फिर आखिर इन 12 मासों में से सिर्फ श्रावण मास ही भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय क्यों है। इस तथ्य से जुड़ी कई पौराणिक कहानियां है। आइए एक-एक कर उन्हें जानने का प्रयास करते है।
शिवत्व का प्रतीक है श्रावण मास। श्रावण मास में ऋषिकेश स्थित पौराणिक नीलकंठ महादेव मंदिर हर वर्ष करीब 50 लाख से अधिक श्रद्धालु जलाभिषेक को पहुंचते है। यहां जलाभिषेक की अपनी अलग ही मान्यता हैं। यहां श्रावण मास में देश के विभिन्न कोनों से श्रद्धालु पहुंचते है।
जिन्हें कांवड़िये कहकर संबोधित किया जाता है और इस मास में कांवड़िये गंगाजली भरकर जलाभिषेक को पहुंचते है। इस संपूर्ण श्रावण मास में श्रद्धालुओं की आमद बनी रहती है। दिन हो चाहे रात यहां श्रद्धालुओं की भीड़ जमी रहती है। इस भीड़ को सुचारू रखने व दंगा-फसाद की स्थिति न पनपने के लिये पूरे उत्तराखंड से पुलिस फोर्स बुलाई जाती है।
श्रावण मास में नीलकंठ महादेव मंदिर में क्यों है जलाभिषेक का महत्व…
कहते हैं समुद्र-मंथन के दौरान उत्पन्न हुये विश हलाहल का पान भगवान शिव ने जगत को विश के प्रभाव से बचाने के लिये किया था। भगवान शिव ने जब इस विश का पान किया था, वह श्रावण का मास था। विश के ताप को शांत करने के लिये ब्रम्हा सहित सभी देवताओं ने जलाभिषेक किया था। फलस्वरूप भगवान शिव का ताप शांत हुआ और तब से ही शिव का जलाभिषेक किया जाने लगा। इसलिये शिव को श्रावण अतिप्रिय है। भगवान शिव का यह रूप इसी नीलकंठ महादेव मंदिर में विराजमान है। इसलिये यहां जलाभिषेक का महत्व और भी बढ़ जाता है।
भोलेशंकर को श्रावण प्रिय होने का दूसरा कारण यह भी है कि…
शास्त्र के अनुसार श्रावण मास के ठीक पहले जगत के पालनहार विष्णु चातुर्मास तक निंद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान संसार का संपूर्ण कार्यभार शिव जी को मिलता है। इसलिये शिव को श्रावण अत्यधिक प्रिय है।
श्रावण में ही माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाया था…
पुराणों के अनुसार देवी सती ने पार्वती रूप में शिव की इसी महीने तपस्या कर उन्हें पति रूप में पाया था। अर्थात शिव और पार्वती का मिलन इसी श्रावण मास में हुआ था। इसलिये त्रिलोकीनाथ शिव को यह माह बहुत पसंद है।
श्रावण मास का नाम श्रावण कैसे पड़ा?
कहते है कि इसी पवित्र श्रावण मास में शिव ने माता पार्वती को सर्वप्रथम श्रीराम कथा सुनाई थी। हम सभी जानते है कि सुनने को श्रवण कहा जाता है। इसलिये इस मास का नाम श्रावण पड़ा। यह भी एक कारण है कि भगवान शिव को श्रावण मास अतिप्रिय है।