मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बुधवार को मुख्यमंत्री आवास में पिरूल (चीड़ की पत्तियों) तथा अन्य प्रकार के बायोमास से विद्युत उत्पादन तथा ब्रिकेट इकाइयों की स्थापना हेतु 21 चयनित विकासकर्ताओं को परियोजना आवंटन पत्र प्रदान किये। उन्होंने नवोन्मेषी उद्यमियों का स्वागत करते हुए इसे पर्यावरण संरक्षण के लिये भी नई शुरूआत बताया। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन रोकना हमारी सबसे बड़ी चिन्ता है। राज्य निर्माण के बाद भी गांवों से हो रहा पलायन चिन्ता का विषय है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिरूल प्रकृति की देन है इसे व्यवस्थित कर ग्रीन एनर्जी में परिवर्तित करना हमारा उदेश्य है। पिरूल से ऊर्जा उत्पादन हेतु आज 21 उद्यमी आगे आए है। उन्हें भरोसा है कि इनकी संख्या शीघ्र ही 121 होगी। उन्होंने कहा कि इसमें राज्य को एनर्जी इंधन के साथ ही वनाग्नि को रोकने में मदद मिलेगी, जगंलों में हरियाली होगी तथा जैव विविधता की सुरक्षा होगी। उन्होंने कहा कि चीड़ से निकलने वाले लीसा से भी 43 प्रकार के उत्पाद बनाये जा सकते है। इसके लिए इंडोनेशिया से तकनीकि की जानकारी प्राप्त की जाएगी। इसका एक प्रोजेक्ट बैजनाथ में लगाया गया है। इससे भी वनाग्नि को रोकने में मदद मिलने के साथ ही हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के वनों से हर साल 6 लाख मीट्रिक टन पिरूल निकलता है। इसके अतिरिक्त अन्य बायोमास भी निकलता है। इस तरह पिरूल व अन्य बायोमास से बिजली उत्पादन का जो लक्ष्य हमने रखा है उसकी शुभ शुरुआत होने जा रही है। पिरूल से बिजली उत्पादन के लिए उरेडा एवं वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है। राज्य में विक्रिटिंग और बायो ऑयल संयंत्र स्थापित किए जाने हैं। इन संयंत्रों के स्थापित होने से पिरूल को प्रोसेस किया जाएगा व बिजली उत्पादन किया जा सकेगा। उरेडा द्वारा इसके लिए प्रस्ताव आमन्त्रित किए गए थे। अभी तक 21 प्रस्ताव जिसमें प्राप्त हुए जिनमें 20 प्रस्ताव पिरूल से विद्युत उत्पादन एवं एक प्रस्ताव पिरूल से ब्रिकेट बनाने के लिए शामिल है।
एक रूपया प्रति किलो से होगा भुगतान
पिरूल के जो सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं उन तक पिरूल की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए महिला समूहों को रोजगार से जोड़ा जा रहा है। जंगलों से पिरूल कलेक्शन करने के लिए महिला समूहों को एक रूपया प्रति किलो की दर से भुगतान किया जाएगा।