उच्च न्यायालय ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत मामले में सख्त रूख अपनाया। उन्होंनें सीबीआई की वन्य जीव शाखा से कराने की इसकी जांच कराने की संस्तुति दी है।
उच्च न्यायालय ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत मामले में सख्त रूख अपनाते हुए जांच सीबीआइ की वन्य जीव शाखा से कराने की संस्तुति दी है। कोर्ट ने कार्बेट के ढिकाला जोन में जिप्सियों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है और अमानगढ़ व धुलवा रेंज को भी पार्क में शामिल करने के आदेश दिए हैं।
मंगलवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सीटीआर के बफर जोन से गुर्जरों की बेदखली सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। अधिकारियों की ओर से कोर्ट को बताया गया कि बाघों की सुरक्षा के लिए अस्थाई रूप से पार्क में स्पेशल टाइगर फोर्स का गठन हो चुका है, जिसमें पूर्व सैनिकों की नियुक्ति की जा रही है।
कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि फोर्स में 40 साल से कम आयु के पूर्व सैनिकों को प्राथमिकता दी जाए। सुनवाई के दौरान मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव ने बताया कि पार्क में मरे नौ बाघों में छह की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है। इन छह बाघों के बिसरे जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे जा चुके हैं, मगर इस मामले में विरोधाभासी बयानों से नाराज कोर्ट ने सभी बाघों की बिसरा रिपोर्ट बुधवार को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने के निर्देश दिए।
पेशी के बहाने पिकनिक मनाने न आएं अधिकारी
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अफसरों पर तल्ख टिप्पणी की। कहा कि कोर्ट में पेशी के बहाने अधिकारी पिकनिक मनाने आते हैं। यह गंभीर है। खंडपीठ ने अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह से कहा है कि वह अदालत के आदेशों के अनुपालन में सहयोग करें। वहीं वन संरक्षक डॉ. पराग मधुकर धकाते व प्रो. बीएल साह द्वारा सीटीआर पर किए गए शोध पर आधारित रिपोर्ट पर गंभीर सवाल उठाए और इन शोधों को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करने के आदेश दिए। सीटीआर से लगे सुंदरखाल गांव को हटाने के आदेश भी कोर्ट ने दिए हैं। इसके साथ ही रिसॉर्ट से छुड़ाए गए बीमार हाथियों की जांच व उनका उपचार कराने का आदेश देते हुए बीमारों हाथियों को अन्य से अलग रखने के निर्देश दिए।