नही रहे भारत रत्न प्रणव दा, राजनीति के एक ओर अध्याय का अंत

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नहीं रहे। आज उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की जानकारी बेटे अभिजीत ने ट्वीट कर दी। उन्होंने ट्वीट किया, “भारी मन के साथ आपको सूचित करना है कि मेरे पिता जी प्रणब मुखर्जी का अभी हाल ही में आरआर अस्पताल के डॉक्टरों के सर्वोत्तम प्रयासों और पूरे भारत में लोगों से प्रार्थना, दुआओं और प्रार्थनाओं के बावजूद निधन हो गया है! मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूं।”
पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व कांग्रेस चीफ राहुल गांधी समेत तमाम नेताओं और अन्य हस्तियों ने दुख प्रकट किया और आत्मा की शांति की कामना की। दरअसल, मुखर्जी की तबीयत सोमवार को और खराब हो गया थी। उन्हें फेफड़े में संक्रमण की वजह से सेप्टिक शॉक लगा था। यह शॉक एक ऐसी गंभीर स्थिति है, जिसमें रक्तचाप काम करना बंद कर देता है और शरीर के अंग पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करने में विफल हो जाते हैं। सेना के अनुसंधान एवं रेफरल अस्पताल ने बताया था कि मुखर्जी का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने कहा कि वह गहरे कोमा में हैं और वेंटिलेटर पर हैं। इलाज विशेषज्ञों की एक टीम कर रही है। पूर्व राष्ट्रपति को 10 अगस्त को इस अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उनकी मस्तिष्क की सर्जरी की गई थी। बाद में उनके फेफड़ों में भी संक्रमण हो गया था।
2012 से 2017 तक देश के राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी को राजनीतिक गलियारों में ‘प्रणब दा’ या ‘दादा’ के नाम से भी पुकारा जाता रहा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे प्रणब दा नेहरू-गांधी परिवार के सबसे करीबी लोगों में रहे थे। हालांकि, 1990 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने प्रणब दा को प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया था। यह दावा कांग्रेस के दिवंगत नेता और गांधी परिवार के नजदीकी नेताओं में शामिल रहे एम एल फोतेदार ने अपनी किताब ‘द चिनार लीव्ज’ में किया है।
किताब में लिखा गया है कि 1990 में वी. पी. सिंह की सरकार गिरने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण चाहते थे कि सरकार कांग्रेस की बने और उसका नेतृत्व प्रणब मुखर्जी करें लेकिन राजीव गाँधी राष्ट्रपति की इस राय के पूरी तरह से खिलाफ थे। किताब में एम एल फोतेदार ने लिखा है कि वी पी सिंह के इस्तीफे के बाद राजनीतिक रायशुमारी के लिए उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण से मुलाकात की थी।मुलाकात के दौरान राष्ट्रपति ने कहा कि अगली सरकार के लिए राजीव गांधी को प्रणब मुखर्जी का समर्थन करना चाहिए।
फोतेदार लिखते हैं, “मैंने राष्ट्रपति से अनुरोध किया कि वह अगली सरकार के गठन के लिए राजीव गांधी को आमंत्रित करें क्योंकि कांग्रेस लोकसभा का अकेला सबसे बड़ा दल है।” इस पर राष्ट्रपति ने यह कहा कि मुझे (फोतेदार) राजीव गाँधी को बताना चाहिए कि अगर वह प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणब मुखर्जी का समर्थन करते हैं तो वह उसी शाम को उन्हें शपथ दिला देंगे।
फोतेदार ने किताब में आगे लिखा है, “मैंने जब राष्ट्रपति वेंकटरमण की कही गई सारी बातें राजीव जी को बताई तो वे काफी आश्चर्यचकित हुए। चूँकि कांग्रेस पार्टी के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे, इसलिए राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को बाहर से समर्थन देने वाला विवादित फैसला लिया।” इस तरह प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए