ग्राम सभा खदरी खड़कमाफ के खादर क्षेत्र में लगभग 100 साल से भी अधिक पुराने प्राकृतिक जल उद्गम स्थल के संरक्षण के लिए स्थानीय युवाओं ने कदम बढ़ाया है। युवाओं ने श्रमदान कर पौराणिक जल उद्गम स्थल के चारों ओर पत्थरों का घेरा बनाया। ताकि, यह जल उगल स्रोत विलुप्त होने से बचा रहे।
बता दें कि खदरी के राजकीय पॉलीटेक्निक के समीप स्थित यह जल उगल स्रोत वर्षों पुराना है। बोक्सा जन जाति के पुराने जानकारों के मुताबिक खदरी का समस्त खादर क्षेत्र नागाओं की भूमि हुआ करती थी। नागा बाबा इस पौराणिक जल ओगल (उगल) स्रोत से ही पेयजल ग्रहण करते थे। जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के बाद खादर क्षेत्र उन सभी कृषकों का हो गया जो नागाओं की खेती किया करते थे।
गंगा स्वच्छता अभियान से जुड़े पर्यावरण मामलों के जानकार विनोद जुगलान विप्र का कहना है कि जब बिजली पानी की इतनी व्यवस्था नहीं थी, तब हम इस प्राकृतिक जल स्रोत का उपयोग किया करते थे। सन 1971 में भारत पाक युद्ध के समय शाम ढलते ही ब्लैक आउट हो जाया करता था। तब यह जल स्रोत खदरी के ग्रामीणों की प्यास बुझाने का एक मात्र बड़ा साधन था। इसी तरह लक्कड़ घाट के समीप भी कुछ अन्य जल उगल थे।
वर्तमान में एक दो को छोड़कर बाकी सभी सीवरेज के पानी के कारण पीने योग्य नहीं रह गए हैं। खदरी के खेतों में पॉलीटेक्निक के समीप इस प्राकृतिक जल उगल का पानी आज भी पीने और स्नान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। बरसात में खेतों से अतिरिक्त पानी आने के कारण यह उजड़ने लगता है। इसके संरक्षण के लिए स्थानीय युवाओं ने पत्थरों की बाड़ बनाई।