देश में फर्जी मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दो सालों में 53.7 करोड़ रुपये की फर्जी मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी बिकी हैं, वहीं ऐसे मामलों की संख्या 498 से बढ़ कर 1,192 तक पहुंच गई है।
नकली पाॅलिसी की संख्या बढ़ी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद सत्र की शुरुआत में बताया था कि इरडा की फ्रॉड मॉनिटरिंग सेल के आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में 498 नकली पॉलिसी बिकीं, वहीं 2017-18 में ये संख्या बढ़ कर 823 हो गई। जबकि साल 2018-19 में यह संख्या बढ़ कर 1192 को पार गई है।
क्लेम की धनराशि में नही मिली
इनमें सबसे ज्यादा फर्जी पॉलिसी ट्रक वालों और दो-पहिया वाहन रखने वालों को दी गईं। वहीं ये पॉलिसी उन लोगों ने खरीदी, जो सड़क पर पुलिस की चेकिंग के दौरान जांच से बचना चाहते थे। एक असली मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी की कीमत जहां 10 हजार रुपये पड़ती है, वहीं नकली पॉलिसी 5 से 6 हजार रुपये में मिल जाती हैं। वहीं ग्राहक ये अच्छे से जानते हैं कि ऐसी पॉलिसी की मदद से आप केवल पुलिस चेकिंग से बच सकते हैं, लेकिन कोई दुर्घटना होने पर उससे कोई क्लेम नहीं ले सकते।
बिना इंश्योरेंस के चल रहे वाहन
वहीं देश में तकरीबन 70 फीसदी वाहन बिना इंश्योरेंस के चल रहे हैं। इरडा का कहना है कि उन्हें 2016 में ।ज्ञब्च्स् जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और 2019 में गोन जनरल और मैरींस टेक्नोलॉजी की फर्जी इंश्योरेंस पॉलिसी बेचने की शिकायते मिलीं हैं। वहीं इनमें से ज्यादातर पॉलिसी सेकंड हैंड गाड़ियों के लिए खरीदी गई थीं, ताकि ट्रैफिक चालान वगैरहा से बचा जा सके।
अन्तरराष्ट्रीय गिरोह सक्रिय
इसके अलावा वाहन मालिकों को फंसाने के लिये बकायदा गैंग बना कर लोगों को ठगा जा रहा है। फरवरी में मुंबई पुलिस के हत्थे एक ऐसा गैंग चढ़ा था, जो दो सालों में 800 से अधिक नकली मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी टू-व्हीलर मालिकों को बेच चुका था। ये जालसाज कम कीमत वाली श्सस्तीश् पॉलिसी की पेशकश कर लोगों को अपने जाल में फंसाने की कोशिश करते थे।
छूट का ऑफर देकर फंसाते है
ये लोग टू-व्हीलर मालिकों को फोन करके मोटर इंश्योरेंस एजेंट होने का दावा कर पॉलिसी रिन्यू कराने पर प्रीमियम और एड-ऑन कवर पर भारी छूट का वादा करते थे। प्रीमियम का चेक मिलने के बाद पॉलिसी जारी हो जाती थी, लेकिन जब बीमाधारक क्लेम दाखिल करता था, तो उसे इंश्योरेंस कंपनी से पता चलता है कि पॉलिसी नकली है और एजेंट लापता है।
पॉलिसी रिन्यू कराने वाले होते हैं टारगेट में
आमतौर पर ये फर्जीवाड़ा उन टू-व्हीलर मालिकों के साथ होता है, जिनकी पॉलिसी रिन्यू होने वाली होती है। आरटीओ के डेटाबेस के जरिये लोगों को फंसाते हैं और फेक पॉलिसी इश्यू करने के लिए जाली लेटर हेड और स्टैम्प का इस्तेमाल करते हैं।
ध्यान रखें कि पॉलिसी खरीदने के लिये चेक या ऑनलाइन ट्रांजेक्शन ही करें। केवल कंपनी के नाम पर ही चेक काटें, किसी निजी व्यक्ति के नाम पर चेक देने से बचें।
वहीं अगर आपने किसी थर्ड पाटी या व्यक्ति से पॉलिसी ली है, तो आपके ईमेल पर उसकी डिटेल आएंगी। यदि नहीं आई हैं, तो इंश्योरेंस कंपनी के कॉल सेंटर पर फोन करके पॉलिसी को वेरिफाई करें।
किसी अंजान कंपनी से पॉलिसी खरीदने से बचें। अगर आपको कोई शक हो रहा है कि इरडा की वेबसाइट पर जाकर लाइसेंस वाली कंपनियों की लिस्ट में उस कंपनी का नाम चेक कर सकते हैं। साथ ही स्वीकृत पॉलिसी की डिटेल भी आपको वहीं मिल जाएगी।
प्त्क्।प् ने कुछ साल पहले बीमा कंपनियों के लिए वाहन बीमा पॉलिसी पर एक फत् कोड प्रिंट करना जरूरी कर दिया है, इससे आप पॉलिसी की डिटेल्स क्यूआर कोड के जरिये मोबाइल पर चेक सकते हैं। भारत में दिसंबर 2015 के बाद बिकने वाली मोटर बीमा पॉलिसियों में आम तौर पर एक क्यूआर कोड होता है।