आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अब भाजपा पर सबकी नजरें टिकी हैं कि क्या सत्तारूढ़ पार्टी भी कांग्रेस की तर्ज पर रणनीति बना रही है। राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार, इस बात की खासी संभावना है कि भाजपा भी जल्द कार्यकारी अध्यक्ष के फार्मूले पर कदम आगे बढ़ा सकती है।
उत्तराखंड छोटा सा राज्य है मगर राजनीतिक गतिविधियों के लिहाज से यह हमेशा चर्चा में रहा है। यहां राजनीतिक उठापटक कितनी ज्यादा है, यह इस तथ्य से समझा जा सकता है कि राज्य गठन के बाद के 20 वर्षों में यहां 11 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में 11वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उत्तराखंड की पहली अंतरिम सरकार में दो, पहली निर्वाचित सरकार में एक, दूसरी में तीन, तीसरी में दो और अब चैथी सरकार में तीन मुख्यमंत्री।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने करारी शिकस्त का स्वाद चखा और वह 70 सदस्यीय विधानसभा में 11 सीटों तक सिमट गई। लाजिमी तौर पर कांग्रेस फिर सत्ता में वापसी की कोशिशों में जी जान से जुटी हुई है। पार्टी में गुटबाजी और अंतर्कलह भी थमा नहीं है। ऐसे में कांग्रेस ने संगठन में संतुलन साधने के लिए पांच अध्यक्ष बनाने का फैसला किया। गणेश गोदियाल के रूप में ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष की कमान दी गई। साथ में चार कार्यकारी अध्यक्ष की टीम भी, ताकि हर तबका संतुष्ट रहे।
साफ है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष का फार्मूला सुविचारित रणनीति के तहत अमल में लाई है। इससे राजनीतिक गलियारों में इस बात के कयास लगने शुरू हो गए हैं कि भाजपा भी इसके जवाब में कोई इसी तरह का कदम उठा सकती है। इस बात को इसलिए भी बल मिल रहा है क्योंकि गढ़वाल मंडल के पर्वतीय जिलों और ब्राह्मण वर्ग से किसी नेता को संगठन में अहमियत देने की बात उठ रही है। गत मार्च में भाजपा नेतृत्व ने सरकार और संगठन, दोनों के मुखिया बदल दिए थे। त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए कुमाऊं मंडल से बंशीधर भगत प्रदेश अध्यक्ष थे।
गढ़वाल मंडल से कई पार्टी नेताओं के नाम की चर्चा
उस वक्त मुख्यमंत्री गढ़वाल से और राजपूत चेहरा तो प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं से और ब्राह्मण। अब भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मदन कौशिक प्रदेश अध्यक्ष हैं। ब्राह्मण हैं और हरिद्वार से विधायक। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले से हैं जबकि तराई में ऊधमसिंह नगर जिले की खटीमा सीट से विधायक हैं। धामी के जरिये भाजपा ने कुमाऊं मंडल के लिहाज से क्षेत्रीय व जातीय संतुलन तो बना लिया, मगर इससे गढ़वाल मंडल से एक कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया। इस कड़ी में भाजपा विधायक महेंद्र भट्ट, विनोद चमोली के साथ ही संगठन के लिहाज से अत्यंत तजुर्बेकार ज्योति गैरोला के नाम इन दिनों इंटरनेट मीडिया में खासी चर्चा में हैं।
सरकार में समान प्रतिनिधित्व हासिल होने का तर्क
हालांकि भाजपा के कई नेता इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वैसे उनका तर्क भी वाजिब है कि सरकार में गढ़वाल मंडल को बराबर प्रतिनिधित्व हासिल है। 12 सदस्यीय धामी मंत्रिमंडल में आधे, यानी छह मंत्री गढ़वाल मंडल से हैं। इनमें से तीन अकेले पौड़ी जिले से हैं, हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज और धन सिंह रावत। टिहरी से सुबोध उनियाल, देहरादून से गणेश जोशी और हरिद्वार से यतीश्वरानंद। कुमाऊं मंडल में ऊधमसिंह नगर जिले से मुख्यमंत्री के अलावा दो मंत्री यशपाल आर्य और अरविंद पांडेय आते हैं। इनके अलावा पिथौरागढ़ से बिशन सिंह चुफाल, अल्मोड़ा से रेखा आर्य व नैनीताल जिले से बंशीधर भगत।