सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही राज्य सरकार प्रदेश में ड्रोन कैमरों का प्रयोग स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदा, कृषि, खनन क्षेत्र में कर सकती हैं। इसके लिए व्यापक स्तर पर रणनीति तैयारियां चल रही है। अभी तक ड्रोन के माध्यम से कम समय में दवाईयां और जांच के लिए सैंपल भेजने का सफल ट्रायल हो चुका है।
प्रदेश में ड्रोन का निर्माण और तकनीक को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने फरवरी 2019 में पहली बार ड्रोन फेस्टिवल का आयोजन किया। सरकार का मानना है कि ड्रोन तकनीक से समय और मैनपावर में कमी आएगी।
आपदा प्रबंधन के साथ ही स्वास्थ्य, कृषि, खनन, वन सेक्टर में ड्रोन का इस्तेमाल कर सकते हैं। हाल ही में सूचना एवं प्रौद्योगिक विकास प्राधिकरण (आईटीडीए) की अनुमति से ड्रोन से दवाईयां और सैंपल पहुंचाने का ट्रायल कामयाब रहा। 18 मिनट के भीतर ही ड्रोन से 36 किलोमीटर दूर ब्लड सैंपल पहुंचाया गया।
जबकि वाहन से आमतौर पर एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है। आईटीडीए विभिन्न विभागों के साथ मिल कर ड्रोन तकनीक को धरातल पर पहुंचाने के लिए रणनीति बना रहा है। सरकार प्रदेश में ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग और तकनीक इस्तेमाल के लिए पॉलिसी बनाने पर विचार कर रही है।
आईटीडीए के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी आलोक तोमर का ने बताया कि स्वास्थ्य, खनन, कृषि, आपदा प्रबंधन समेत अन्य क्षेत्रों में ड्रोन तकनीक को धरातल पर उतारने के लिए रणनीति बनाई जा रही है।
आईटीडीए ने प्रदेश के राजकीय पॉलिटेक्नीक में पढ़ रहे 70 छात्रों को ड्रोन को उड़ाने की प्रशिक्षण दिया है, जिसमें 24 छात्राएं हैं। आईटीडीए प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से छात्रों को ड्रोन तकनीक के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
कृषि क्षेत्र में ओलावृष्टि, सूखे या बीमारी लगने से फसलों को नुकसान होता है तो ड्रोन से कम समय में इसका आकलन किया जाएगा। ड्रोन पर लगे कैमरों के जरिये से प्रभावित इलाकों में सर्वे कर स्थिति का जायजा लिया जाएगा। अभी तक लेखपाल व राजस्व कानूनगो के माध्यम से फसलों का आकलन किया जाता है, जिसमें लंबा समय लगता है।
खनन क्षेत्र में प्रदेश के नदी, नालों में अवैध खनन रोकने में ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा। ड्रोन से यह पता लग सकेगा कि किस क्षेत्र में माफिया खनन कर रहे हैं। ड्रोन काफी ऊंचाई से खनन की तस्वीरें विभाग को उपलब्ध करा देगा, जिससे कार्रवाई में आसानी होगी।
स्वास्थ्य क्षेत्र में आपातकालीन स्थिति में किसी मरीज का ब्लड सैंपल या जरूरत दवाईयां भी ड्रोन के जरिये पहुंचाई जा सकेगी। ड्रोन में पांच किलोग्राम भार तक सामान ले सकते हैं। देहरादून और टिहरी में अभी हाल में स्वास्थ्य सेवाओं में ड्रोन तकनीक का प्रयोग सफल रहा।
आपदा प्रबंधन क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा की दृष्टि से उत्तराखंड संवेदनशील है। आपदा घटने पर तत्काल प्रभावित क्षेत्र का सर्वे ड्रोन से किया जा सकेगा। क्योंकि आपदा में सड़क मार्ग, कनेक्टिविटी की सुविधा ठप होने से कई बार बचाव दल को मौके पर पहुंचने पर समय लगता है। ऐसे में प्रभावित क्षेत्रों में हालात का पता ड्रोन से कुछ ही समय में लगेगा।