राज्यसभा में बोलने की इजाजत न मिलने पर भड़कीं बसपा सुप्रीमो ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। मायावती ने राज्यसभा सभापति के दफ्तर पहुंचकर बाकायदा तीन पेज का इस्तीफा सौंपा. हालांकि, वहां मौजूद कांग्रेस और बीएसपी सांसदों ने उन्हें मनाने की कोशिश की, बावजूद इसके मायावती अपने स्टैंड पर कायम नजर आईं और सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। मगर, बड़ा सवाल है कि क्या मायावती का इस्तीफा मंजूर होगा?
ये सवाल इसलिए भी जरुरी है क्योंकि संसद की सदस्यता से इस्तीफा देने के लिए जो नियम हैं, मायावती ने उनका पालन नहीं किया है। नियम है कि संसद के दोनों सदनों का कोई भी सदस्य जब अपनी सदस्यता से इस्तीफा देता है तो महज एक लाइन में लिखकर संबंद्ध चेयरमैन या स्पीकर को सौंपना होता है। जबकि इसके उलट मायावती ने जो इस्तीफा राज्यसभा सभापति के ऑफिस जाकर सौंपा वो तीन पन्नों का है।
नियम के मुताबिक इस्तीफे के साथ न ही कोई कारण बताया जाता है और न ही उस पर कोई सफाई दी जाती है। कोई भी संसद सदस्य इस्तीफा देते वक्त इस्तीफा देने का कारण त्यागपत्र में नहीं लिख सकता है।
पहले भी इस्तीफा हुआ है नामंजूर
रोड रेज की घटना में दोषी पाए जाने के बाद 2006 में तत्कालीन लोकसभा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा दिया था। मगर सिद्धू का इस्तीफा तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने नामंजूर कर दिया था। जिसके बाद सिद्धू ने दोबारा बिना कोई कारण बताए अपना त्यागपत्र स्पीकर को दिया, जिसे मंजूर कर लिया गया था।
यही नही, नवंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज यमुना लिंक नहर पर निर्माण कार्य जारी रखने का फैसला दिया था। इस फैसले से नाराज होकर तत्कालीन कांग्रेस सांसद कैप्टन अमरिंदर सिंह लोकसभा स्पीकर को अपना इस्तीफा भेज दिया था। कैप्टन अमरिंदर ने अपने त्यागपत्र में इस्तीफा देने के कारण की व्याख्या भी की थी, जिसे उपयुक्त न मानते हुए मंजूर नहीं किया गया था।