आखिरकार डबल इंजन की ताकत के बूते उत्तराखंड ने अपनी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में लंबी छलांग लगा ही दी। 26 साल से बंद पड़ी लखवाड़ बहुदेश्यीय बनने से राज्य को 300 मेगावाट बिजली प्राप्त हो सकेगी। साथ ही राज्य को पेयजल, सिंचाई व अन्य जरूरतों के लिए पानी भी उपलब्ध होगा। हालांकि इसके लिए उत्तराखंड को कुल लागत का सबसे ज्यादा यानी 37 फीसद से अधिक खर्च को वहन करना होगा। इसका निर्माण उत्तराखंड जलविद्युत निगम लिमिटेड करेगा।
अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने का जो सकंल्प लिया गया था। उसमें पिछली सरकारों के रुचि न दिखाने से राज्य को बड़ी आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है। कुछ पर्यावरणीय बंदिशों, गंगा व सहायक नदियों पर बनने वाली बड़ी और महत्वाकांक्षी जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक लग चुकी है। ऐसे में यमुना नदी पर दशकों पहले प्रस्तावित परियोजना पर उत्तराखंड ने बड़ी उम्मीद लगाई थी। इन परियोजनाओं में बड़ी और महत्वाकांक्षी लखवाड़ से राज्य को अधिक उम्मीदें भी हैं। इसकी वजह इस से उत्पादित होने वाली पूरी 300 मेगावाट बिजली उत्तराखंड को ही मिलनी है।
सीएम त्रिवेंद्र की पहल लाई रंग
शेष पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान को इस के तहत बनने वाले बांध से पेयजल व सिंचाई के लिए जल की आपूर्ति होनी है। वहीं उत्तराखंड को बिजली तो मिलेगी ही, पानी में भी हिस्सेदारी रहेगी। इसी वजह से कुल 3966.51 करोड़ की कुल लागत में 1475.03 करोड़ अकेले उत्तराखंड को वहन करने हैं। त्रिवेंद्र रावत की सक्रियता के चलते इस परियोजना को अंजाम तक पहुंचाने में केंद्र सरकार की बड़ी मदद राज्य को मिली है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ओर से इस को शुरु करने के लिए की गई पैरवी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अंजाम तक पहुंचा दिया। इससे जुड़े राज्यों ने पेयजल व सिंचाई के लिए बनने वाले बांध के निर्माण में सहयोग करने से हाथ पीछे खींच लिए थे।
केंद्र और राज्यों की हिचक के चलते वर्ष 1976 में प्रस्तावित की गई यह बहुद्देश्यीय परियोजना का कार्य 1992 तक आते-आते रुक गया। अब केंद्र सरकार से जुड़े सिंचाई और पीने के पानी की व्यवस्था वाले हिस्से के कुल 2578.23 करोड़ का 90 फीसद खुद वहन करेगी। सिर्फ 10 फीसद हिस्सा छह राज्यों को उठाना है। केंद्र की इस सक्रियता ने अन्य राज्यों को इससे दोबारा जुड़ने का रास्ता साफ कर दिया।
लखवाड़ के बाद किसाऊ की तैयारी
वहीं केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारें बनने के बाद उत्तराखंड की मुराद पूरी हो गई है। यही नहीं, यमुना नदी पर किसाऊ को लेकर भी सहमति बनाने में केंद्र की अहम भूमिका रही है। लखवाड़ में जहां 204 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध बनना है, वहीं किसाऊ में यमुना की सहायक नदी टौंस पर देहरादून जिले में 236 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध बनाया जाएगा। त्रिवेंद सरकार किसाऊ शुरू करने के लिए पूरी शिद्दत के साथ जुटी है।
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