नगर निगम ने पर्वतीय अंचल की लोक संस्कृति के प्रतीक ढोल, दमाऊं व हुड़के की कर्णप्रिय धुनों को संजोने के लिए नायाब पहल की है। केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय, उमंग संस्था के प्रयास और नमामि गंगे के सहयोग से नगर निगम आगामी 3 अप्रैल से हिमालयी निनाद को संयोजित करने के लिए सात दिवसीय कार्यशाला का आयोजन करेगा। उक्त गढ़वाल मंडल विकास निगम के अतिथि गृह में मेयर अनिता ममगाई ने दी।
बताया कि कार्यशाला में हिमालय लोक वाद्यों के वादकों द्वारा अपने वाद्य यंत्रों के साथ-साथ अन्य वाद्य यंत्रों का पारस्परिक वादन तथा जुगलबंदी कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया जाएगा। इस कार्यशाला में लोक वाद्य में बजाए जाने वाली तालों और चालो का आपसी सामंजस्य के साथ चरणबद्ध तरीके से प्रस्तुति कलाकारों को समयबद्व होकर अपने प्रस्तुतीकरण का अभ्यास कराया जाएगा। जिसकी प्रस्तुति का वृहद कार्यक्रम नगर की हद्वय स्थली त्रिवेणी घाट में भी आयोजित किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के वाध्य यंत्र विलुप्ति की कगार पर है, जबकि विभिन्न पर्व, मेलों व संस्कारों में गाए जाने वाले लोक गीतों को बेहद खास बनाने में पहाड़ के वाद्य यंत्रों का विशेष स्थान है। एक दौर में परंपरागत वाद्य यंत्रों का वादन बहुतायत से होता था, लेकिन आधुनिकता की चकाचैंध से यहां के परंपरागत वाद्य यंत्रों की धुनें अब कभी कभार ही सुनाई देती हैं। बताया कि पहाड़ की इस परंपरा एवं संस्कृति को बचाने की आवश्यकता है। इन वाद्य यंत्रों के वादन के संवर्द्धन को कारगर नीति तैयार कराने के लिए भी कोशिश की जानी चाहिए। कार्यशाला के माध्यम से पूर्वजों की इस धरोहर को आगे बढ़ाने के लिए इसमें रूचि रखने वाले युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए के लिए यह अभिनव कार्यशाला आयोजित की जा रही है। बताया कि गंगा स्तुति के साथ गंगा घाट पर विविध कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा जिसमें तमाम कलाकार उत्तराखंडी वेशभूषा में अपनी प्रस्तुति देंगे।
इस अवसर पर गणेश कुकशल(संचालक), डॉ प्रभाकर बडोनी (उमंग प्रकोष्ठ केंद्रीय गढ़वाल विश्व विद्यालय) संदीप उनियाल(नमामि गंगे, व्यवस्था अधिकारी), रामचरण जुयाल (वाह्य यन्त्र कलाकार), पार्षद कमलेश जैन, राधा रमोला, वंशीधर पोखरियाल आदि मौजूद रहे।