आखिर कसाण गांव की की पीड़ा कब दूर होगी। पिछले एक दशक से कसाण गांव सड़क की समस्या से जूझ रहा है। मगर, यहां सड़क का कुछ लोग यह कहकर विरोध कर रहे है कि सड़क हमारी खेत से होकर नहीं जानी चाहिए। यह भी वह लोग है, जो अब गांव से पलायन कर शहरों में बस चुके है।
यमकेश्वर प्रखंड के डांडामंडल क्षेत्र में स्थित कसान गांव 11 वर्ष पूर्ण तब सुर्खियों में आया था जब यहां बादल फटने से कुछ घर जमींदोज हो गए थे। 14 अगस्त 2007 की रात यहां आई इस आपदा में 4 लोगों की मौत हो गई थी। इस गांव की पीड़ा का कोई हल नहीं निकल पाया है।
आपदा पीड़ित होने के बावजूद प्रभावित लोगों का विस्थापन नहीं हो पाया। जितने भी लोग यहां रह रहे हैं वह विपरीत हालत में भी गांव की अवधारणा को पूरा करने के साथ पलायन जैसी समस्या को चुनौती दे रहे हैं। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार गांव से मुख्य सड़क करीब 4 किलोमीटर दूर है। यहां तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क नहीं है। किसी तरह से लोग आवागमन बनाए रखे हैं। विकट हालत तब हो जाते हैं जब गांव में कोई गंभीर रूप से बीमार हो जाए। स्थानीय ग्रामीण सोहन ने बताया कि सोमवार को स्थानीय नागरिक देवेंद्र सिंह राणा की तबीयत खराब हो गई। आसपास क्षेत्र में पर्याप्त चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। बीमार को चिकित्सालय तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती थी।
गांव वालों ने हिम्मत दिखाई कुर्सी में डंडे बांधकर उसे पालकी बनाया गया। इस कुर्सी में बीमार को बिठाकर किसी तरीके से पहाड़ी इलाके के ऊंचे-नीचे 4 किलोमीटर लंबे सफर किया गया। मुख्य मार्ग पर पहुंचने के बाद निजी वाहन के जरिए बीमार को ऋषिकेश चिकित्सालय लाया गया। ग्रामीणों ने बताया कि जो लोग गांव में बसे हैं वह सड़क की मांग कर रहे हैं। मगर जो लोग गांव छोड़कर दिल्ली और अन्य जगह बस गए हैं। उनमें से कुछ लोग सड़क का यह कहकर विरोध कर रहे हैं कि सड़क हमारे खेतों से होकर नहीं जानी चाहिए।