ये कैसा मजाक: सरकार की नजर में 150 रुपये में आती हैं किताब

ऋषिकेश। दयाशंकर पाण्डेय
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के तहत प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों को सरकार 150 रुपये सालाना किताबें खरीदनें को देती है जबकि इसके विपरीत छात्रों की किताबों के दाम आसमान छू रहे है। आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावकों के कॉपी किताब और ड्रेस बनवाने में पसीने छूट रहे हैं।
शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के तहत प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ने का मौका मिलता है। आरटीई के तहत बच्चों की फीस सरकार स्कूलों को देती है। सरकार बच्चों को स्कूली ड्रेस, किताब खरीदने और हाजिरी के हिसाब से भी खाते में पैसा उपलब्ध कराती है लेकिन किताब खरीदने के नाम पर सालाना मात्र 150 रुपये छात्रों को देती है।
स्कूल ड्रेस के नाम पर भी 400 रुपये सालाना छात्रों के एकाउंट में आते हैं। आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने का ख्वाब देख रहे अभिभावकों को तब गहरा झटका लगता है जब बाजार में कक्षा एक के छात्र की किताब खरीदने में अभिभावकों को हजारों रुपये का बिल चुकाना पड़ता है। दबी आवाज में अभिभावक स्वीकार कर रहे हैं कि महंगे स्कूलों में फ्री एडमिशन और फीस नहीं देने के बाद भी उनका बजट गड़बड़ा रहा है।

सरकार 150 रुपये किताबों के प्रकाशन में आने वाली लागत के अनुसार छात्र के एकांउट में डालती है। चूंकि प्राइवेट स्कूलों का सिलेबस एक जैसा नहीं होता है तो किताबों की लागत अधिक आना स्वाभाविक है।
नरेन्द्र शर्मा, ब्लाक समन्वयक डोईवाला।