ढौंढियाल के ‘गीत’ में छिपा है एक सकारात्मक ‘पहलू’

इसमें कोई दोराय नहीं कि नेताओं के भाई-भतीजावाद और नकल माफिया की ओर से की गई सरकारी नौकरियों की सौदेबाजी ने पात्र युवाओं का हक मारा है। पिछले दो दशक से लगातार बेरोजगारों को छला जा रहा है। माफिया, नौकरशाह और राजनेता नापाक गठजोड़ करके सपनों के सौदागर बने हुए हैं। अब जबकि इस गठजोड़ के कारनामे उजागर होने रहे हैं तो युवा आक्रोशित हैं। उनमें उबाल है। वो सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं। विपक्ष आन्दोलन को हवा दे रहा है। लोकगायक अपनी नई रचनाओं से युवा ताकत को जागृत कर रहे हैं। इसी बहाने अंदरखाने सियासत भी तेज हो गई है।
विरोध के माहौल के बीच एक लोकगायक ने परिदृश्य से हटकर नया गीत बनाया है, जो सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहा है। इस गीत के गायक हैं डा. अजय ढौंढियाल। ढौंढियाल पेशे से पत्रकार हैं और हमेशा जनहित के मुद्दों पर मुखर रहे हैं। अब लोकगीत और संगीत को माध्यम बनाकर वो समाज को लोकतंत्र में संभावित खतरों से सचेत कर रहे हैं। उनके नये गीत का शीर्षक हैं श्चल चल रे धामी बढ़ने चल बढ़ने चलश्। इस गीत में ढौंढियाल ने सरकार का एकतरफा सामूहिक विरोध करने के बजाए उस पर भरोसा जताने का आह्वान किया है। उनका यह गीत मैंने भी सुना। मौजूदा माहौल में लीक से हटकर गाया गया यह गीत चौंकाता है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या ढौंडियाल ने सरकार की चाटुकारिता में ये गीत गया है? मैंने फोन लगाकर सीधे ढौंढियाल जी से ही यह सवाल पूछ लिया। उनका जवाब सुनकर लगा कि वास्तव में गीत के माध्यम से उठाए गए उनके पहलू पर भी विचार किया जाना चाहिए। ढौंढियाल ने कहा यह हमारे प्रदेश का दुर्भाग्य है कि सरकारी सिस्टम की कोई खामी या कारनामा उजागर होने के बाद विपक्ष हो या सत्ता पक्ष के कुछ लोग सरकार को अस्थिर करने में जुट जाते हैं। मिशन मोड में मुख्यमंत्री को हटाने की कोशिशें शुरू हो जाती हैं। असली मुद्दा पीछे छूट जाता है और समूची ताकत तख्ता पलट के लिए एकजुट हो जाती है। ऐसा सिर्फ अभी नहीं हो रहा। राज्य बनने के बाद लगातार सरकारों को अस्थिर किया गया। यही वजह है कि नारायण दत्त तिवारी जी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। मौजूदा समय में पुष्कर सिंह धामी उस सरकार के मुखिया हैं जिसे जनता के प्रचण्ड बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता सौंपी है। धामी नौकरी में हुई धांधली की अपने राज्य की एजेंसी एसटीएफ से जांच करवा रहे हैं। अभी तक लग रहा है कि जांच निष्पक्ष तरीके से आगे बढ़ रही है। धामी भी लगातार जनता को विश्वास दिला रहे हैं कि एक भी दोषी नहीं छूटेगा। ऐसे में युवाओं और जनता समेत सत्ता पक्ष विपक्ष के सभी लोगों को उन पर भरोसा करना चाहिए। सिर्फ इस आशंका पर कि जांच में असली दोषियों को सजा नहीं मिलेगी, सरकार को अस्थिर करना ठीक नहीं। खासतौर पर विपक्ष का मापदण्ड दोहरा दिखाई दे रहा है। जिस सीबीआई की निष्पक्षता पर विपक्ष हमेशा अंगुली उठाता रहा है, आज उसी से इस संवेदनशील मामले की जांच के लिए हल्ला काटा जा रहा है। कुल मिलाकर राजनैतिक अस्थिरता से राज्य का भला होने वाला नहीं है। समस्या को जड़ से दूर करने में सभी को सहयोग करना होगा। सरकार की उपलब्धियों को तात्कालिक प्रभाव से खारिज नहीं किया जा सकता। अपने मुख्यमंत्री पर भरोसा रखना होगा। मुख्यमंत्री भरोसा तोड़ते हैं तो फिर जतना के पास विकल्प की कमी नहीं हैं।

(लेखक दीपक फर्सवाण एक पत्रकार है)