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“वाह रे बचपन” पुस्तक में है संस्मरणों का सिलसिला

डा.अतुल शर्मा की कलम से…

यह एक अभिनव प्रयोग है
जो बचपन सहेजे हुए है

_डा सुनील दत्त थपलियाल “कर्मठ”
बचपन नाम सुनते ही कुछ पंक्तियों को गुनगुनाने का मन होता है —
“कैसे भूलू बचपन की यादों को मैं
कहाँ उठा कर रखूं किसको दिखलाऊँ
संजो रखी है कब से कहीं बिखर न जाए
अतीत की गठरी कहीं ठिठर न जाये”
उक्त पंक्तियों पर यदि दृष्टिपात करें तो हम उस अतीत कि और लौट जाते हैं जिसकी
वाह रे बचपन_के संपादक डा. अतुल शर्मा ने एक महत्वपूर्ण साहित्यिक शृखला संपादित की है जिसमे बड़े लोगो का बचपन सहेजा गया है ।पहला अंक 2013 मे प्रकाशित हुआ । बहुत से लोगो से संस्मरण लिखवाये और स्वय छाप दिये । यह एक ओर तो रोचक है और दूसरी ओर एक दस्तावेज भी । बचपन चाहे अभावो मे हो या फिर अभावों मे न हो पर उसका दस्तावेजीकरण बड़ी उपलब्धि मानी गई है ।
बहुत समीक्षाए हुई ।
महत्वपूर्ण बात यह कि आज जब लोगो मे पुस्तके खरीदने और पढने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है तब ऐसे मे यह शृखला आती है और घर के सभी लोग इसे खरीदकर पढते है । और इतना ही नही बल्कि हमेशा सहेजने के प्रति आगे आ गये हैं ।


अब तक जिनके बचपन के संस्मरण डा.अतुल शर्मा छाप चुके है उनमे से कुछ है_लोकगायक नरेन्द्र सिह नेगी, छायाकार कमल जोशी, अरण्य रंजन, पंकज पंवार, सुजाता सिह, डा गंगा प्रसाद,विमल, डा. महेश कुडियाल, डा जयन्त नवानी, रेखा शर्मा, रंजना शर्मा, सुजाता सिह, डा धनंजय सिह, डा अमिताभ शर्मा, दोलन राय, प्रबोध उनियाल, महेश चिटकारिया, ज्योति चिटकारिया, नन्द किशोर हटवाल, शिव प्रसाद जोशी, अरण्य रंजन, जया शुक्ला, विभूति भूषण भट्ट, डा मदनमोहन, स्वामी मनोज अनुरागी, पी सी ध्यानी, दुर्गा नौटियाल प्रशान्त राय, अंशु पान्डेय, अर्पित मिश्रा, रोशनी उनियाल आदि के साथ वरिष्ठ रंगकर्मी उर्मिल कुमार थपलियाल का बचपन का संस्मरण भी इसमे छपा है ।
और भी बहुतो का बचपन इसमे है । इसका बहुत स्वागत किया गया है ।
वाह रे बचपन को कभी न खत्म होने वाला सिलसिला कहा गया है ।
वास्तव मे यह सशक्त और सफल पुस्तक शृखला आगे भी बढे इसके लिये कृपया इसका दिल खोल कर स्वागत करे

डॉ सुनील दत्त थपलियाल ने डॉ अतुल शर्मा के इस बेहतरीन प्रयास का अभिन्नदन करते हुए बताया कि व्यक्ति जहां उम्र के पड़ाव की सरिता में ज्यों – ज्यों आगे बढ़ता चला जाता है वैसे वैसे बहुत ही कम लोग हो पाते हैं जो बचपन के संस्मरणों को संजोए रखने की फुर्सत रखते हैं वरना नदी की अवस्थाओं की तरह जीवन सागर मे विलीन हो जाता है एसे समय पर इस प्रकार के संकलन (वाह रे बचपन) उन यादों की तरफ मोड़ देता है जो जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कुछ पल अनुकूलता का सुखद वातावरण दे पाता है।
डॉ अतुल शर्मा के इस संकलन को पाठकों द्वारा बेहद पसंद किया जा रहा है , जिसके कारण निरंतर वाह रे बचपन के कई संकलन पाठकों के लिए तैयार होते जा रहे हैं । डॉ अतुल जी के इस अतुलनीय प्रयास का सदेव वंदन ।