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पर्वतीय क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान देने की जरूरतः मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पर्वतीय जिलों में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए जिलाधिकारियों को विशेष ध्यान देने के निर्देश दिये गये हैं। विकासखण्ड स्तर पर यह विचार करना जरूरी है कि कैसे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की जा सकती है। उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों में प्रति व्यक्ति आय में 30 हजार रूपये की वृद्धि हुई है। पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिये सरकार प्रयासरत है। इन्वेस्टर समिट में 40 हजार करोड़ रूपये के एमओयू पर्वतीय क्षेत्रों के लिए हुए है। प्रत्येक न्याय पंचायत पर ग्रोथ सेंटर विकसित किये जा रहे हैं। 58 ग्रोथ सेंटर स्वीकृत किये जा चुके हैं। पिरूल से बिजली बनाने का कार्य किया जा रहा है। सौर ऊर्जा की 600 करोड़ की योजनायें विभिन्न उद्यमियों को पर्वतीय क्षेत्रों के लिए आवंटित की गई हैं। सर्विस सेक्टर में भी काफी इन्वेस्टमेंट पहाड़ों में संभावित है। महिला सशक्तीकरण के लिए एलईडी उपकरण बनाने के लिए ब्लॉक स्तर महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। सरकार ने इन उपकरणों की खरीद की व्यवस्था भी की है।
उत्तराखण्ड की प्रथम मानव विकास रिपोर्ट 2019 इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट नई दिल्ली के सहयोग से तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य का ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स 0.718 है। इस रिपोर्ट में ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स, लैंगिक विकास सूचकांक, बहुआयामी गरीबी सूचकांक यथा शिक्षा, स्वास्थ्य व जीवन स्तर एवं राज्य में जन्म पर जीवन प्रत्याशा का आकलन किया गया है। मानव विकास सूचकांक में देहरादून प्रथम, हरिद्वार दूसरे व उधमसिंह नगर तीसरे स्थान पर रहे। लैंगिक विकास सूचकांक में उत्तरकाशी प्रथम, रूद्रप्रयाग द्वितीय तथा बागेश्वर तृतीय स्थान पर रहे। बहुआयामी गरीबी सूचकांक में उत्तरकाशी प्रथम, हरिद्वार द्वितीय व चम्पावत तृतीय स्थान पर रहे। उत्तराखण्ड राज्य की जन्म पर जीवन प्रत्याशा 71.3 वर्ष है। पिथौरागढ़ जनपद में जन्म पर जीवन प्रत्याशा सर्वाधिक 72.1 वर्ष है।

मानव विकास रिपोर्ट रिपोर्ट में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, स्वच्छता, विद्युतीकरण, प्रति व्यक्ति आय के क्षेत्र में राज्य की उपलब्धियों के साथ विकास के मार्ग में मौजूद बाधाओं व चुनौतियों व उनकों दूर करने के लिए मार्गदर्शक उपायों को भी समावेशित किया गया है। जो भविष्य में बेहतर विकास रणनीतियों के निर्माण एवं क्रियान्वयन हेतु राज्य सरकार व विभिन्न विभागों को उत्प्रेरित करती रहेगी। यह रिर्पोट मानव विकास तथा समावेशी विकास को विकास के केन्द्र के रूप में बनाये रखने हेतु राज्य की योजनाओं, नीतियों एवं हस्तक्षेपों के आधार के रूप में कार्य करेगी।
‘ग्रीन एकाउंटिंग ऑफ फॉरेस्ट रिसोर्स, फ्रेमवर्क फॉर अदर नेचुरल रिसोर्स एण्ड इण्डेक्स फॉर सस्टनेबल एनवायरमेंटल परफॉर्मेंस फॉर उत्तराखण्ड स्टेट’ हेतु इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल के सहयोग से तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में राज्य के वन संसाधनों के आर्थिक महत्व को मौद्रिक रूप में मापने का प्रयास किया गया है। राज्य 18 वन सेवाओं को फ्लो वैल्यू 95,112.60 करोड़ तथा तीन सेवाओं का स्टॉक वैल्यू 14,13,676.20 करोड़ आंकलित हुआ है। इससे राज्य सरकार की लंबे समय से चली आ रही ग्रीन बोनस की मांग को भारत सरकार के समक्ष अधिक प्रभावी ढ़ग से रखने में मदद मिलेगी।
उत्तराखण्ड आर्थिक सर्वेक्षण भाग-2 में उत्तराखण्ड राज्य की अर्थव्यवस्था को समृद्ध कर राज्य को देश के अग्रणी राज्य में शामिल करने के साथ-साथ समान सामाजिक न्याय, पर्यावरण तथा विकास की प्रक्रिया के बीच ताल-मेल को बढ़ावा देने, पर्यटन के क्षेत्र में पर्यटन स्थलों को वैश्विक स्तर का तैयार कर घरेलू तथा विदेशी पर्यटकों के लिए शीर्ष प्राथमिकता प्रदान करना है। राज्य के दूर-दराज पहाड़ी क्षेत्रों में औद्यानिकी के द्वारा कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने तथा पारिस्थितिकी के अनुकूल औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए इसमें मदद मिलेगी। यह रिपोर्ट राज्य द्वारा सतत विकास 2030 के लक्ष्यों की कार्य योजना में भी सहायक होगी।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री के औद्योगिक सलाहकार डॉ. के.एस. पंवार, प्रमुख सचिव मनीषा पंवार, श्रम संविदा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल, सचिव बी.एस मनराल, अपर सचिव सुरेश जोशी, निदेशक अर्थ एवं संख्या सुशील कुमार, डी.डी.जी. एन.एस.एस.ओ राजेश कुमार, आईआईएमएफ भोपाल की डॉ. मधु वर्मा, आईएचडी नई दिल्ली के डॉ.आई.सी. अवस्थी, ई.एच.आई संस्थान के डॉ. आर.एस. गोयल आदि उपस्थित थे।