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प्रसिद्ध रंगकर्मी और व्यंग्यकार उर्मिल कुमार थपलियाल बहुत याद आयेगे..

डा. अतुल शर्मा की वाॅल से

फोन आया शायद दो महीने पहले कि अतुल भैया मै देहरादून में हूं। कैसे मिलना होगा? यह आवाज थी प्रसिद्ध रंगकर्मी और व्यग्यकार भाई उर्मिल कुमार थपलियाल जी की। मेरे बहुत पुराने परिचित। मै वसंतविहार गया और आईटीएम और उत्तरजन के चैनल के लिये एक लंबा साक्षात्कार भी रिकार्ड कर लाया।

बात देहरादून मे बीते उनके बचपन की हुई। वे यहां रामलीला मे सीता बनते थे और चर्चित थे। उन्होंने यह मेरे सम्पादन में निकलने वाली पुस्तक ‘वाह रे बचपन’ मे भी लिखी थी। यहां से वे लखनऊ आकाशवाणी मे न्यूज रीडर होकर चले गये । समय बीता और उन्होंने रंगकर्म मे कीर्तिमान स्थापित किये ।दर्पण नाट्य संस्था के वे संस्थापक सदस्य थे ।उन्होने नौटंकी जैसी लोकविधा को नया आयाम दिया था । आज के सामाजिक राजनैतिक स्थितियों को उसमे शामिल कर दिया । उन्होने दुश्यन्त कुमार धूमिल आदि की कविताये उस मे शामिल कर दीं ।पूरे देश मे प्रसिद्ध हुई उनकी नागरी नौटंकी ।एक तो वे देहरादून भी लाये थेऋष्हरिश्चचन्नर की लडाई ष्। एक गढवाली भाषा मे अभिनव प्रयोग किया । भवानीदत्त थपलियाल के नाटक ष्प्रहलाद और जयविजय नाटक किया निर्देशित ।उसमे आधुनिक रंगमंच की शैलियो का प्रयोग किया ।गीत भी थे और ब्रेख्त की थ्योरी भी शामिल की ।सफल प्रदर्शन ।राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली हो या देश के विभिन्न शहरो मे उन्होने हर जगह मंचन किये बहुत से नाटको के ।मैने उनका नाटक ष्यहूदी की लड़की ष् भी देखा था ।और भी बहुत सारे नाटक देखे उनके ।
देहरादून मे वे जब भी आते तो घर जरुर आते ।
कोरोना लाक्डाउन के दौरान उनका फोन आया कि सब रुक गया है । अब न नाटक मे दर्शक दिखेगे न मिलना मिलाना हो पायेगा । यह तो अजीब हो गया है ।इस पर मैने कहा कि मैने फेसबुक पर साहित्य अंक शुरु किया है । उस पर जुडिये । और वे जुड़े । उनमे उत्साह बहुत था ।
उन्हे केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्रदान किया गया था । यश भारती सम्मान और बहुत से सम्मान मिले थे ।
क ई अखबारो मे व्यग कालम भी निरंतर लिखे ।दैनिक हिन्दुस्तान मे बहुत प्रसिद्ध रहे उनके लिखे व्यग ।रीजनल रिपोर्टर मे वे निरंतर लिखते रहे ।और भी बहुत बहुत सी जगह ।
बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि रंगमंच तो जीवन है । उसमे जीवन से जुड़े सभी पहलू है । यह तो पाठ्यक्रम मे शामिल रहना चाहिए ।
जब भी मै उनसे देहरादून की होली की बात करता तो वे फाल्तूलाइन होली समिति के अनुभव जरुर सुनाते ।
उनसे कविताएं भी बहुत सुनी है ।
उर्मिल कुमार थपलियाल की जिजीविषा अस्सी पार भी जीवन से भरी हुई रही ।युगवाणी के लिये लिखते तो कभी रंगमंच विचार गोष्ठी मे बोलते ।वे डा डी आर पुरोहित के साथ श्रीनगर गढ़वाल मे रंगमंच कार्यशाला करने की योजना बना रहे थे ।
आज वाह रे बचपन मे लिखे उनके बचपन के संस्मरण पढ रहा था ।
उनसे देहरादून मे आखिरी मुलाकात तो भूल ही नही पाउगा ।उन्होने मुझ से कहा कि मेरी जडे़ं तो देहरादून मे हैं ।
मेरे साथ के लोग तो अब रहे नही । अब तुम से ही देहरादून की बात कर लूं जरा ।
मुझे नही पता था कि देश के महान रंगकर्मी और मेरे बड़े भाई सरीखे उर्मिल भाई से मेरी यह आखिरी मुलाकात होगी ।
वे तो कह कर गये थे कि इस बार तुमसे लखनऊ मे होगी । यार कभी आना लखनऊ. ..
सोचता हूं अब कहां जाऊं ??