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विलुप्त हो रहे औषधीय पौधों को बचाएं युवा पीढ़ी

देहरादून।
वन अनुसंधान संस्थान में कौलागढ गेट पर केन्द्रीय पौधशाला के समीप 67वां वन महोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर डा. शशि कुमार, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् मुख्य अतिथि थे। डा. सविता, निदेशक, वन अनुसंधान संस्थान ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् व वन अनुसंधान संस्थान के अधिकारियों तथा वैज्ञानिकों के साथ सहभागिता कर की। वन महोत्सव पर लगभग 120 औषधीय वृक्षों एवं पौधों (ेीतनइे) का रोपण किया गया।
रूद्राक्ष (इलाइओकार्पस स्फेरिकस), कुसुम (स्कलाइचेरा ओलेओसा), पुत्रांजीवा (पुत्रांजीवा रोक्सबर्धी), रैड सैंडर, (पिएरोकार्पस एन्टेनस), सतावरी (एसपारेगस रेसमोसस), अर्जुन (टर्मिनेलिया अर्जुन), बेल (ऐगल मरमाइओस) का रोपण किया गया। डा. शशि कुमार ने रूद्राक्ष का पौधा रोपित किया जबकि डा0. सविता ने कुसुम की पौध लगाई।
महानिदेशक ने वृक्षारोपण की संस्कृति को बच्चों, विद्यार्थियों एवं युवाओं के मन मस्तिष्क में उतारने पर जोर दिया, जिससे कि शहरी व ग्रामीण परिसरों में वृक्षारोपण की रिवाज/परंपरा आने वाली पीडी को हस्तांतरित हो सके। निदेशक वन अनुसंधान संस्थान ने दोहराया कि प्राकृतिक वनों के बाहर जहां प्राकृतिक रूप से उग रहे औषधीय पौधे अत्यधिक जैविक दवाब झेल रहे हैं, व साथ ही विलुप्त होने की कगार पर हैं। ऐसे प्रयासों से हमारे देश के औषधीय वृक्षों का संरक्षण होगा। इस अवसर पर सभी उप महानिदेशक सहायक अधिकारियों, वैज्ञानिकों, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् एवं वन अनुसंधान संस्थान के कर्मचारियों ने सक्रिय रूप से सहभागिता की तथा अपनी-अपनी पसंद के औषधीय पौधों का रोपण किया।