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आचार्य योगेश जोशी से जानिए, वट सावित्री अमावस्या का महत्व और पूजन विधि…

ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि को हिन्दू महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं। इस बार वट सावित्री अमावस्या 29 मई को है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और संतान सुख प्राप्त होता है। मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। भारतीय धर्म में वट सावित्री अमावस्या स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। मूलतः यह व्रत-पूजन सौभाग्यवती स्त्रियों का है।

वट वृक्ष का महत्व
’अश्वत्थरूपी विष्णुःस्याद्वरूपीशिवो यतः।’
अर्थात पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु और डालियों एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है। अतः किसी मंदिर में या बरगद (वट) के पेड़ के नीचे बैठ कर ही इस दिन व्रत पूजा करें। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि बड़ अमावश्य के दिन वट वृक्ष की पूजा से सौभाग्य एवं स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
सावित्री सत्यवान की कथा-इसी दिन ही सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की। सावित्री और सत्यवान की कथा से वट वृक्ष का महत्व लोगों को ज्ञात हुआ क्योंकि इसी वृक्ष ने सत्यवान को अपनी शाखाओं और शिराओं से घेरकर जंगली पशुओं से उनकी रक्षा की थी। इसी दिन से जेष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन वट की पूजा का नियम शुरू हुआ। शनि देव की कृपा पाने के लिए चाहें तो वट वृक्ष की जड़ों को दूध और जल से सींचें इससे त्रिदेव प्रसन्न होंगे और शनि का प्रकोप कम होगा। तथा धन और मोक्ष की चाहत पूरी होगी। वट वृक्ष की पूजा इसदिन आमतौर पर केवल महिलाएं करती हैं जबकि पुरूषों को भी इस दिन वट वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। इसकी पूजा से वंश की वृद्घि होती है।

’कैसे करे वट सावत्री का पूजन-’ सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम सात बार परिक्रमा करें। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें। व्रती को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। व्रती को अपनी सास या अन्य सुहागन स्त्री को साड़ी पैसे,श्रंगार पिटारी देना चाहिए।पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।