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धर्माचायों ने क्यों कहा-आपातकाल में राजधर्म ही सब धर्मों में श्रेष्ठ

श्री बदरीनाथ व केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि परिवर्तित की गई है। जिसका धर्माचार्यो और धर्म विशेषज्ञों ने स्वागत किया है। वहीं, केदारनाथ के कपाट खुलने की नई तिथि आज घोषित होगी। धर्म मर्मज्ञों का कहना है कि पहले कभी भी ऐसी परिस्थितियां नहीं आई, जब बदरीनाथ व केदारनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि बदलनी पड़ी हो। बदरीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी और केदारनाथ के रावल भीमा शंकर लिंग ने भी राजाज्ञा के अनुसार क्वारंटाइन रहना स्वीकार कर देश-दुनिया को राष्ट्रधर्म के अनुपालन का संदेश दिया है। बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल कहते हैं कि आपातकाल में राजधर्म ही सब धर्मों में श्रेष्ठ है। ऐसे में बदरीनाथ के कपाट खोलने की तिथि परिवर्तित किया जाना राजधर्म के पालन के साथ ही धर्मग्रंथों के हिसाब से भी उचित है। कहा कि शीतकाल में भगवान नारायण के धाम में देवपूजा का विधान है। देवताओं की ओर से स्वयं देवर्षि नारद भगवान नारायण की पूजा करते हैं। कपाट खुलने के बाद नर पूजा का विधान है। लेकिन, देश में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन से हर व्यक्ति घरों में ही रह रहा है। ऐसे में हक-हकूकधारी, श्रद्धालु व स्थानीय लोगों के बिना कपाट खोलने से नर पूजा के मायने नहीं रह जाते। कहा कि कई प्रांतों से गुजरकर आए मुख्य पुजारी ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी भी नियमानुसार स्वास्थ्य परीक्षण करा चुके हैं। साथ ही उन्होंने लॉकडाउन के नियमों का पालन कर क्वारंटाइन को स्वीकार किया। यह अनुकरणीय पहल है।
धर्माधिकारी ने कहा कि टिहरी के राजा को ’’बोलांदा बदरी’’ माना गया है। ऐसे में राजा का निर्णय स्वयं नारायण का निर्णय है और यह प्रजा के हित में भी है। बदरीनाथ पूर्व धर्माधिकारी जगदंबा प्रसाद सती का कहना है कि संकटकाल के दौरान राजधर्म में ही सारे धर्म लीन हो जाते हैं। इन दिनों कोरोना महामारी के चलते देश में महाभय का वातावरण है। ऐसे में राजधर्म का पालन कर तिथि आगे बढ़ाने का निर्णय धर्मसंगत है। कहा कि जनता से ही जनार्दन की शोभा है और वर्तमान परिस्थितियां जनार्दन के दर पर जाने से जनता को रोकती हैं।