ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग ने मुख्यमंत्री को सौंपी अपनी रिपोर्ट

गुरूवार को ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की टीम द्वारा राज्य में ग्राम्य विकास के क्षेत्र में योजनाओं का विश्लेषण करने के बाद एक रिपोर्ट मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को सौंपी गई। आयोग द्वारा तैयार की गयी 5वीं रिपोर्ट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सिफारिशें की गयी हैं ताकि पलायन को कम किया जा सके।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन रोकना तथा जन सुविधाओं के विकास पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है, यह हमारे लिये एक बड़ी चुनौती भी है। मुख्यमंत्री ने इस दिशा में पलायन आयोग द्वारा अब तक किये गये प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि उनके सुझावों पर राज्य सरकार द्वारा प्रभावी पहल की जायेगी। उन्होंने कहा कि हमारे गांव व खेती आबाद हो, इसके लिये व्यापक जन जागरूकता जरूरी है। मुख्यमंत्री ने न्याय पंचायत स्तर पर कृषि विकास से संबंधित विभागों के अधिकारियों की टीम बनाये जाने की भी जरूरत बतायी।

उपाध्यक्ष, ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग डॉ. एस.एस.नेगी द्वारा दिये गये सुझावों में प्रदेश में एम.ए.एन.आर.ई.जी.ए. के तहत 50 प्रतिशत से अधिक लाभार्थी महिलाएँ हैं, ये महिलायें अतिरिक्त आय सृजित कर सकें, इसके लिए समान अवसर और भागीदारी सुनिश्चित करके सभी जनपदों के लिए महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50रू से अधिक बनाए रखने के प्रयास किए जाने चाहिए।

महिलाओं के कौशल विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि वे कुशल श्रमिकों के रूप में लाभ उठा सकें। उन्होंने बताया कि फसलों को बंदर और जंगली सूअर जैसे जानवरों द्वारा नुकसान होने की समस्या है। कुछ ब्लॉक में जंगली सूअरों से सुरक्षा के लिए दीवारें बनाई जा रही हैं, सभी जनपदों में ऐसा किया जाना आवश्यक है। बंदरों से फसलों की सुरक्षा के लिए संपत्तियां बनाने के लिए एक योजना वन विभाग की सहायता से तैयार की जानी चाहिए।

स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाए गए उत्पादों के लिए गुणवत्ता निगरानी और प्रमाणन किया जाना चाहिए। इससे मानकीकरण होगा और सार्वभौमिक बाजार खुलेगा। उत्पादों के विपणन और खुदरा के लिए गतिशील ऑनलाइन प्लेटफॉम विकसित किए जाने चाहिए। एक सोशल मीडिया रणनीति विकसित की जानी चाहिए। सैनिटरी पैड बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह विकसित किए जा सकते हैं। प्रत्येक जनपद में एक इकाई की स्थापना की जा सकती है।

उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र की महिलाओं को ऋण सुविधा उपलब्ध कराने के लिये जमीनी कागजों में पति-पत्नी का नाम सामान्य किये जाने पर भी बल दिया है। उन्होंने कहा कि उनके स्तर पर किये गये सर्वेक्षण 36 ब्लॉकों के 152 गाँवों की आय में लगभग 25 प्रतिशत का अन्तर महसूस किया गया है।