किक्रेटर सचिन के दोस्त के आशियाने पर चली जेसीबी

क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर जब भी उत्तराखंड की सैर को आते थे, तो मसूरी जाना में ही रूकते थे। मसूरी में वह अपने बेहद करीबी दोस्त एवं उद्योगपति संजय नारंग के आशियाना ढहलिया बैंक परिसर पर ठहरते थे, लेकिन यही आशियाने पर छावनी परिषद लंढौर प्रशासन ने जेसीबी चलवा दी है। कानूनी लड़ाई जीतने के बाद परिषद ने विरोध के बीच इस तीन मंजिला बंगले के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू की। नारंग पर परिसर में अवैध तरीके से निर्माण कराने का आरोप है।
अदालत के फैसले के क्रम में छावनी परिषद की टीम सीईओ जाकिर हुसैन और एसडीएम मीनाक्षी पटवाल की अगुआई में ढहलिया बैंक परिसर पहुंची। पुलिस और अतिक्रमण हटाओ दल इससे पहले ही वहां पहुंच गया था, लेकिन मुख्य प्रवेश द्वार पर तैनात सुरक्षा गार्डो ने उन्हें परिसर में घुसने से रोक दिया। गार्डो ने धक्का-मुक्की भी की। एसडीएम, सीईओ और पुलिस अधिकारियों के हस्तक्षेप पर टीम परिसर में दाखिल हुई और वहां मौजूदा गार्ड एवं अन्य स्टाफ को बाहर निकालकर जेसीबी से ध्वस्तीकरण शुरू किया। 30 मजदूरों समेत 45 सदस्यीय टीम अवैध निर्माण तोड़ने में जुटी है। एहतियातन वहां सुरक्षा बल तैनात है।
क्या था पूरा मामला
संजय नारंग ने 2009 में कैंट बोर्ड से 2800 वर्गफीट में फैले ढहलिया बैंक परिसर की मरम्मत की इजाजत मांगी थी। बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष मेजर जनरल रणबीर यादव ने बोर्ड के बहुमत के आधार पर नारंग को इसकी अनुमति दे दी, लेकिन कुछ समय बाद ही तत्कालीन सीईओ अशोक चौधरी इसे नियमों के विरुद्ध बताते हुए मामला उच्चाधिकारियों के संज्ञान में ले आए। इस बीच, नारंग ने पुराना निर्माण ध्वस्त कर परिसर में नया निर्माण कार्य शुरू कर दिया। बोर्ड अधिकारियों ने कार्य रुकवाने के आदेश दिए पर अमल नहीं हुआ। कुछ ही अंतराल में नारंग ने परिसर में तीन मंजिला भवन खड़ा कर डाला। सिविल न्यायालय और सत्र न्यायालय के बाद मामला नैनीताल हाई कोर्ट तक पहुंचा। नैनीताल हाई कोर्ट ने बीती 5 सितंबर को ढहलिया बैंक में हुए अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण के आदेश दिए। इसके खिलाफ संजय नारंग ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका डाली, लेकिन उन्हें वहां से भी राहत नहीं मिली। 18 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के ध्वस्तीकरण के आदेशों को बरकरार रखा। नारंग को 12 दिनों के भीतर बंगला खाली करने को कहा। वैसे नारंग ने 90 दिनों की मोहलत मांगी थी, पर अदालत ने इसे नहीं माना।
नहीं ली गयी निर्माण के समय अनुमति
ढहेलिया बैंक परिसर के पास ही रक्षा मंत्रालय का संस्थान (इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी मैनेजमेंट) भी है। इसकी वजह से इस पूरे इलाके को अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। यहां किसी भी निर्माण से पहले संस्थान की अनुमति लेनी अनिवार्य है, लेकिन संजय नारंग ने इसे भी नजरअंदाज किया।
ध्वस्त से पूर्व ही हटा लिये थे कीमती सामान
सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के बाद से ही संजय नारंग ने इस आलीशान बंगले से अपना सामान शिफ्ट करना शुरू कर दिया था। कमरों में केवल दरवाजे और खिड़कियों की चौखट लगी मिलीं। यही नहीं, बंगले के अगले हिस्से में दीवारों पर लगाया गया कीमती सामान भी उतरवा लिया था। कुछ मजदूर छत पर लगी पठाल (पत्थर) भी उतारते मिले।
ढहलिया बैंक परिसर में बेसमेंट सहित तीन मंजिला निर्माण ध्वस्त किया जाना है। इसमें एक सप्ताह अधिक समय भी लग सकता है।