अवैध रूप से बिना वीजा और पासपोर्ट के रह रहा जर्मन विदेशी धरा

बिना पासपोर्ट और वीजा के पिछले 18 वर्षों से एक विदेशी नागरिक साधुवेश में तीर्थनगरी में डेरा डाले हुए है। कई साल से अवैध निवास कर रहे विदेशी नागरिक के बारे में पुलिस और एलआईयू को शुक्रवार को पता चल पाया। पुलिस सूचना मिलने के बाद मुनिकीरेती क्षेत्र स्थित नावघाट पहुंची। जब नागरिक से उसके वैध दस्तावेज मांगे गए तो उसने काफी देर तक एलआईयू टीम को प्रवचन के झांसे में उलझाए रखा। आखिरकार स्वीकार किया कि उसके पास कोई पासपोर्ट, वीजा या निवास का कोई वैध दस्तावेज नहीं है।
अवैध रूप से निवास कर रहा जर्मन नागरिक जर्गेन रुडोल्फ 1981 में भारत आया था। इस दौरान पिछले 38 साल से वह महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारत के विभिन्न शहरों में रहा। पिछले 18 साल से वह ऋषिकेश क्षेत्र में स्थान बदल-बदल कर रह रहा है। फिलहाल उसका मौजूदा ठिकाना मुनिकीरेती स्थित नावघाट बना हुआ है। वह गंगा किनारे बने सीढ़ी पर टेंट डालकर रह रहा है। अवैध तरीके से रहने की सूचना मिलने के बाद करीब 12 बजे मुनिकीरेती पुलिस और एलआईयू की सब इंस्पेक्टर उमा चैहान अपनी टीम के साथ पूछताछ को पहुंचे। पूछताछ के दौरान जर्गेन रुडोल्फ ने पहले तो आनाकानी की। बाद में अपना मूल निवास भी बताने से इनकार कर दिया।
बाद में उसने कुछ दस्तावेज दिखाए जिसके मुताबिक वह जर्मन नागरिक है, और 1981 में भारत आ गया था। तब से वह गेरुआ वस्त्र पहने पिछले 18 सालों से तीर्थनगरी में अलग-अलग स्थानों पर रह रहा है। एलआईयू एसआई उमा चैहान के मुताबिक अवैध निवास कर रहे जर्मन नागरिक की सूचना संबंधित एंबेसी को दी जाएगी। फिलहाल अभी मामले की पड़ताल की जा रही है। वहीं थाना अध्यक्ष मुनिकीरेती आरके सकलानी का कहना है कि विदेशी नागरिक के अवैध प्रवास संबंधी मामले की गहन छानबीन हो रही है। दस्तावेजों की पड़ताल के बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
वहीं, विदेशी जर्गन रुडोल्फ का कहना है कि उसके पास वीजा, पासपोर्ट सहित सभी वैध दस्तावेज थे। कई साल पहले कुछ बदमाशों ने रुपयों के लालच में सारे दस्तावेज फाड़कर फेंक दिए। उनके पास पैसे भी नहीं हैं। जर्मन एंबेसी में एक बार मदद की गुहार लगाई थी। इसके बावजूद एंबेसी के लोग सहयोग नहीं कर रहे हैं। रुडोल्फ का कहना है कि अब उसने भारतीय संस्कृति को आत्मसात कर लिया है। उसका नया नाम आशाराम गिरि है। पूरा विश्व मेरा कुटुंब है। परिवार में कोई नहीं है। मां गंगा ही मेरी सबसे बड़ी शुभचिंतक है।