हरदा के दांव को समझ नही पा रही भाजपा

देहरादून।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को विधानसभा चुनाव ने भले ही मायूस किया हो, लेकिन उनके हौसले अभी पस्त नहीं हुए हैं। दावतों का सिलसिला जारी रख वह खुद को सूबे की सियासत के केंद्र में बनाए रखने का कोई मौका चूकने को तैयार नहीं हैं। लेकिन, दो माह के भीतर उनकी दावतों का अंदाज कुछ अलहदा ही है।
विधानसभा चुनाव में हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर की जिन दो सीटों पर मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जो दांव खेला था, उसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने दून शहर से दूरी बनाकर पहाड़ की तलहटी को अपने आशियाने के लिए चुना। इसके बाद पहाड़ को केंद्र में रखकर उनकी दावतों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उससे पार्टी के बाहर और भीतर उनके प्रतिद्वंद्वी भी खासे सकते में हैं। हरदा सुर्खिया बटोरने में उनसे कहीं आगे हैं।
पहाड़ के उत्पादों को उनकी दावतों में मिल रही तरजीह को उनके पहाड़ को केंद्र में रखकर बुने जा रहे सियासी एजेंडे से जोड़कर देखा जा रहा है। इस एजेंडे के निशाने पर वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव भी हैं। विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जा चुका है, लिहाजा हरीश रावत यह जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में उनकी सियासी हैसियत उनकी सक्रियता से ही साबित होनी है। ऐसे में हरदा अभी से फूंक-फूंककर कदम बढ़ाते दिख रहे हैं। पहाड़ की सियासत में रिवर्स पलायन को उनकी रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है। इसके बूते ही पलायन से शहरों में उभर गए मतदाताओं के पहाड़ों पर भी उनकी नजरें टिकी हैं।