उत्तराखंड के परिणामों के बाद सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत का बढ़ा कद

उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में आने के बाद अब यहां मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का कद भी बढ़ गया है। त्रिवेन्द्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश की पांचों सीटें भाजपा के कब्जाई है। वहीं कांग्रेस को खाता खोलने का मौका भी नहीं दिया गया। कांग्रेस के कद्दावर नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को हराकर प्रदेश अध्यक्ष भाजपा अजय भट्ट का भी सीना चौड़ा हुआ है।

अजय भट्ट के चुनाव में चले जाने के बाद पांचों सीटों पर भाजपा के प्रचार की डोर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथों में ही थी। उनके राजकाज और राजनीतिक कौशल को चुनावी कसौटी पर माना जा रहा था। सियासी हलकों में ये चर्चा आम थी कि यदि पांच में से एक भी सीट भाजपा के कब्जे से निकली तो इसका ठीकरा मुख्यमंत्री के सिर पर ही फूटेगा। सियासी जानकारों की मानें तो पांचों सीटों पर जीत दर्ज कर जहां भाजपा ने अपने वर्चस्व को बरकरार रखा तो वहीं मुख्यमंत्री चुनावों में अजेय बने रहने के रिकार्ड को भी बनाए रखने में कामयाब रहे। 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रदेश में थराली विधानसभा का उपचुनाव हुआ और उसके बाद शहरी निकायों के चुनाव हुए। इन दोनों ही चुनावों में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रतिष्ठा दांव पर मानी गई। दोनों चुनावों में भाजपा ने जीत दर्ज की। लोकसभा चुनाव में भी उनकी प्रतिष्ठा को दांव पर माना जा रहा था।

अजय भट्ट का सियासी कद बढ़ा
नैनीताल लोस से हरीश रावत सरीखे खांटी राजनीतिज्ञ को मात देने वाले अजय भट्ट का भी कद बढ़ा है। प्रदेश अध्यक्ष की सफल भूमिका निभाने के बाद पार्टी ने उन पर दांव लगाया था। चुनाव जीतकर उन्होंने पार्टी के फैसले को सही साबित किया।

हिमाचल में भी दिलाई जीत
जनरल बीसी खंडूड़ी के राजनीतिक शिष्य तीरथ सिंह रावत ने गढ़वाल लोकसभा सीट पर शानदार जीत दर्ज की। उन्होंने खंडूड़ी के बेटे को हराकर पार्टी के फैसले को सही साबित किया। हिमाचल में चारों सीटों पर भाजपा की जीत का श्रेय भी तीरथ के खाते में दर्ज हुआ है। वे वहां प्रदेश प्रभारी थे, चुनाव के दौरान उन्होंने वहां डेरा जमा रखा था।

डॉ. निशंक ने दूसरी दफा जीता चुनाव
हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव जीते डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का भी कद बढ़ा है। वे लगातार दूसरा चुनाव जीते हैं। चुनाव शुरू होने से पहले उनकी सीट पर मुकाबला कड़ा माना जा रहा था। लेकिन हरीश रावत के नैनीताल लोस सीट पर जाने से उनकी चुनावी राह आसान मान ली गई थी।