उत्तराखंड की लंबित जल विद्युत परियोजना पर मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के बीच हुयी वार्ता

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को अवगत कराया कि उत्तराखंड में जल, विद्युत उत्पादन का सबसे बड़ा सम्भाव्य स्रोत है। राज्य में उपलब्ध जल स्रोतों से लगभग 25000 मेगावाट विद्युत क्षमता आंकी गई है। राज्य सरकार द्वारा पर्यावरणीय दृष्टिकोण एवं सतत् विकास के परिप्रेक्ष्य से लगभग 17000 मेगावॉट विद्युत क्षमता ऑकलन कर इसके दोहन हेतु चिन्हित किया गया है।

वर्तमान में 4000 मेगावॉट क्षमता का ही दोहन हो सका है। राज्य में विद्युत की मांग लगभग 13000 मिलियन यूनिट प्रतिवर्ष है, जिसमें प्रतिवर्ष 5 से 8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है। इस मांग की लगभग 35 प्रतिशत की आपूर्ति यूजेवीएनएल द्वारा पूर्ण की जाती है, 40 प्रतिशत केन्द्रीय पूल तथा शेष 25 प्रतिशत निजी स्त्रोतों से विद्युत क्रय कर आपूर्ति की जाती है। अलकनंदा एवं भागीरथी नदी घाटी में कुल 70 जल विद्युत परियोजनाएं स्थित हैं, जिनमें से 19 परियोजनायें परिचालनरत हैं तथा शेष परियोजनायें निर्माणाधीन विकासाधीन हैं।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत बुधवार को नई दिल्ली में उत्तराखण्ड की लम्बित जल विद्युत परियोजनायों आदि के क्रियान्वयन के संबंध में केन्द्रीय जल संसाधन विकास मंत्री नितिन गडकरी के साथ आयोजित बैैठक में सम्मिलित हुए। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में विभिन्न पर्यावरणीय कारणों एवं उच्चतम न्यायालय के द्वारा दिये गये निर्णय के कारण लगभग 4000 मेगावाट की 33 जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण कार्य बाधित है। उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देश के क्रम में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अलकनंदा एवं भागीरथी नदी घाटियों मे स्थित जल विद्युत परियोजनाओं के संबंध मे बनाई गई विशेषज्ञ समिति के द्वारा दी गई रिपोर्ट पर पर्यावरण संरक्षण एवं नदियों में सत्त जल प्रवाह के दृष्टिगत राज्य सरकार, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार एवं विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अपनी सहमति प्रदान की जा चुकी है।

समिति के द्वारा 10 जल विद्युत परियोजनाओं के क्रियान्वयन की संस्तुति दी गई है। जबकि राज्य भी 24 जल विद्युत परियोजनाओं की 2676 मेगावाट क्षमता के क्रियान्वयन न किये जाने की संस्तुति की गई है, जिसमें लगभग रूपये 27000 करोड़ निवेश की सम्भावना थी। इन परियोजनाओं पर कुल रूपये 1540 करोड़ की धनराशि विभिन्न विकासकर्ताओं द्वारा व्यय की जा चुकी है। इसके साथ ही विष्णुगाड पीपलकोटी 444 मेगावाट, फाटा भ्यूंग (76 मे0वा0), सिंगोली भटवारी (99 मे0वा0) परियोजना की कुल 619 मेगावाट की योजनाओं पर कुल रूपये 7294 करोड़ के सापेक्ष 3700 करोड़ व्यय किये जा चुके हैं। इन योजनाओं पर लगभग 80 प्रतिशत धनराशि व्यय होने के बाद रोक लगाना राज्य हित में नही होगा।

मुख्यमंत्री ने बैठक में प्रदेश की ऊर्जा जरूरतों के प्रति गडकरी का ध्यान आकृष्ट करते हुए अनुरोध किया कि भागीरथी व गंगा बेसिन से इतर अन्य नदियों में लम्बित जल विद्युत परियोजनाओं के क्रियान्वयन तथा लम्बित जल विद्युत परियोजनाओं को आरम्भ किया जाना राज्य हित में जरूरी है। मुख्यमंत्री ने राज्य की विपरीत भौगोलिक स्थिति तथा वनावरण की अधिकता के कारण सीमित संसाधनों के दृष्टिगत उत्तराखण्ड को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं को पुनः प्रारम्भ किया जाना भी राज्यहित में जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि हम छोटी-छोटी जलविद्युत परियोजनाओं के जरिए अपनी विद्युत क्षमता को बढ़ाने का निरन्तर प्रयास कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि केन्द्रीय मंत्री गडकरी से राज्य की लम्बित जल विद्युत परियोजनाओं आदि के संबंध मे उनसे हुई वार्ता सकारात्मक रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड की आय का बड़ा स्रोत जल विद्युत परियोजनाएं हैं। हमारी कोशिश है कि राज्य की लम्बित जल विद्युत परियोजनाओं पर जल्दी काम हो और इन योजनाओं से बिजली का उत्पादन हो सके, जिससे प्रदेश के संसाधनों में भी इजाफा हो सके।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी जल विद्युत परियोजनाओं में से एक बड़ा हिस्सा ऐसे क्षेत्रों का है जिसे इको सेंसेटिव जोन घोषित किया गया है। इस पर भी बैठक मे चर्चा की गई कि कैसे उन क्षेत्रों में योजनाओं के क्रियान्वयन से बिजली उत्पादन किया जा सके। उन्होंने कहा कि राज्य की लखवाड जैसी जल विद्युत परियोजनाओं पर पूरी तरह से सहमति बन गई है। जल्दी इसके लिए शीघ्र टेंडर जारी किए जाएंगे और योजना पर कार्य शुरू हो जाएगा। एनजीटी और अन्य मुद्दों को लेकर पर्यावरण के जानकारों से पहले भी बैठक हो चुकी है।